अथर्ववेदालोचन मीमांसा | Atharvavedalochana Mimansa

Atharvavedalochana Mimansa by अज्ञात - Unknown

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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( रेप फेर से कुछ के कद व्यवहार में श्रादे लगे, परन्तु व्यवहार ज्यों का से बना रइता है । उदाहरण के लिये श्रवलोक्न कीजिये । यवन- राज्य में काज्ञो मुल्त्ता उपाधियां विदित होती है ३००, ४०० चथ' के पूर्व जिप्तका झमियेग गया कांजी के न्पायाल्लय में वा सुख्लाझों नें किसी प्रमियेग पर व्यवस्था दी, इतिदासां से यद्दी विदित देता . हैं । चर्रमान में भी लेफ़टिनेन्ट, चाइसराय, वो, कमिश्नर, कलकुर. थे शधिकारों के नामकरण हैं । व्यक्ति विशेषों के नहीं । श्राप चहुत टूर न जाइये सम्प्रति दो दयानन्द झापके समझ उपस्थित हैं एक श्रार्ययलमाज के जम्मदाता श्ौर दिवीय श्रमसभा के मम्तब्यों के प्रतिपादक श्रागे चलफर टानों का विरोध उत्त समय की जनता का इस सन्देद में डालेगा कि यहां तो दयानन्द सूर्तिलराडन कर्चा, है गौर दुसरे स्थान पर मगडन इसी प्रकार सचंदा से भ्नेफ नामों, में से एफ नाम के छनेक पुरुष हैति चले श्राये हैं। उनके लिये बिना ब्रिचारे यदद दठ करना कि नहीं ये तो वेही हैं, विचारशीलों के थोग्य नहीं । विचारशील स्तनों के विचाराथ तो वसंमान का. ग्यचद्ार बहुत कुछ सद्दायता देता है । भूत भविष्यत्‌ कालो का समा-, प्रेश च्तमान में रहता है । वतन काल भूत श्र भधिष्यत्‌ का, केन्द्र है। भूत तथा मविष्यद्‌ वर्चमान केन्द्र दी से पीछे घर शागे, को चलते हैं, । विचारशील इस, पर पूरा प्यान वे तो भूत झौर, भविष्यत्‌ देनी फॉलो के , ब्यवद्दारों को इस्तामलकथत्‌ कप ,संकता है। इत्यादि देतुग्री से श्राप के दिये उपनिपहुं प्रमाण किसी झम्य: काल फी घटना विशेष ही इसमें दमें कुछ घक्तव्य विशेष नहीं, परन्वू, . श्रापका यद सिद्ध करना कि शथवंदेद का प्रादुर्माव इसी अह्मा के पुत्र झधर्वा पर हुमा है झथवंदेद के भापकी मनसिशता प्रकद, करता है । कारण कि शथर्षवेद ,जिसकों झथर्वा और, झ गिरा, यताता है चदू कोई. व्यक्ति 'विशेष नदीं । श्रापने थे के. तो कई.




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