महुए का पेड़ | Mahuye Ka Ped
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
6 MB
कुल पष्ठ :
138
श्रेणी :
हमें इस पुस्तक की श्रेणी ज्ञात नहीं है |आप कमेन्ट में श्रेणी सुझा सकते हैं |
यदि इस पुस्तक की जानकारी में कोई त्रुटि है या फिर आपको इस पुस्तक से सम्बंधित कोई भी सुझाव अथवा शिकायत है तो उसे यहाँ दर्ज कर सकते हैं
लेखक के बारे में अधिक जानकारी :
पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)सुबद्द जब बहू से मनोहर को देखा तो उनकी आँखें भर त्रायीं |
किसी ग्वयालाती दुनिया में खोया-सा सो रहा था
दी के कुद्दासे से उसका सारा शरीर मोद्दाविट्र हो गया था !
ने छुछ देर तक ढेखती रदीं, पर गाड़ी के समय का ध्यान श्राते दी वे
उठ खडट्टी छुई श्राौर मनोदर को जगा कर कहने लगीं; “देख, जल्दी से
यार हो जा, ठुके भी स्टेशन तक साथ चलना दोगा 1”
मनोंदर को तैयार क्या दोना था; उसने जल्दी से छुता गले में डाल
शिया श्र सोचमे लगा, मै श्रान बहू जी का साथ नहीं छोड़ेंगा, देखें
वन चच्ची वो जूते पदनानी हूं [--फिर उसके जी मे श्ाया; कह दे,
“ज््यी की तैवार कर दीजिए, जूते पहना दीजिए, मै लेकर चलूं ” पर
उसका साइस न हृथ्ा,--शायद बहू जी सेरे सिर पर यह काम न मढ़
दें | पर इस बार थे नहीं इटेंगा ! और वह जूते शरीर बच्ची के श्ास-पास
चक्कर काटता रहा |
घट में जल्दी-जल्दी नददा-वों लिया था श्रौर वह बच्ची को कपडे भी
पहना चुकी थी । व मनोहर डर दी रहा था कि कु करने को कह कर
राल न हैँ कि बहू जी बोल उठीं; “क्या खड़ा-खडा दखता है; सनोइर
वेद ! जल्दी से टिफ्न केस्यिर लेकर रसोई से पूड़ियाँ रखा ले; माँ ने
चना ली हैं ।” शरीर बच्ची की ऑगुली पकड़ कर जूते के पास तक चली
गयी | पर मनोहर कैसे रुकता, उसे रसोईघर तक तो जाना ही था |
उसका मन कुछ भारी दो गया ।
स्टेशन दो मील था; पर जाते समय धूप नहीं थी । फिर भी मनो
रास्ते के बड़े-बड़े पलास के पत्तों को देखता गया, क्योंकि कडाहे के तेल
की तरह जलने वाली धूप श्रौर भडरे की तरह जलती गद होगी लोटते
समय; बच्ची के जूते, माघ की ठारी, माधघो का चरमराता हुआ जूता तौर
मालिक का चमरीघधा, कुछ भी तो उसे याद नहीं श्राया था । बस, पलास
के प्ले, जो इस तपन मे दी सुश्ापंखी दृरियरी से नाच उठते हैं--शायद
जानवरों की छाया के लिए, मनोहर के पैरो के जूते के लिए श्रौर हा;
जूते १७
User Reviews
No Reviews | Add Yours...