भारत में प्रागैतिहासिक प्रौद्योगिकी | Bharat Mein Praagaitihasik Praoudhogiki
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
3 MB
कुल पष्ठ :
112
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)युगीन सस्कृतियो मे पाये जाते हैं, लेकिन उच्च पुरा पावाण-युगीन सस्कृति
अथवा सच्ची ब्लेड-फलक सस्कृतियों मे ये नियमित रूप से प्राप्त होते हैं । ऐसा
माना जाता है कि इसी युग मे ब्लेड-फलक प्राप्त करने की उचित तकनीक
का पता लगा था ।
समानात्तर किनारो से युक्त ऐसे लम्बे तथा कम चौडे फलक प्राप्त करने
के लिए जिस तकनीक का प्रयोग होता था बह इस प्रकार है
सर्वेप्रयम चकमक-प्रन्थि अथवा चकमक के समान बिल्लौर जैसे सुद्म
कणवाले पत्थर को, ब्लेड-फलक कोर के लिए उपयुक्त चिपटा आधात-स्थल
बनाने के उदद दय से, दो बराबर भागों में तोड़ दिया जाता है। टूटे हुए आधे
माग की सतह यथासम्मव समतल होनी चाहिए, जहा निषेघात्मक सघात-
अषं-शकु का सखोखलापन न रहे । आजकल इसे प्रस्तर-मथवा प्रस्तर-ग्रन्थि का
विभाजन कहते हैं ।
इसके बाद ब्लेड-फलक निकालते के लिए कोर-निर्माण की क्रिया प्रारम्भ
होती है । विभाजित खण्डक को (चिकनी सतहयुक्त प्रस्तर-प्रन्थि के अघ॑ को) ,
आधात-स्थल को ऊपर की ओर तिरछा किये हुए, घुटने से थामा जाता है ।
तत्पदचात् एक लघु हथौडा-पत्थर से उस बिन्दु के ठीक ऊपर, जहा खडक
घुटने पर थमा होता है, किनारे-किनारे धीरे-धीरे हल्की चोट की जाती है ।
प्रत्येक चोट के साथ कोर को, घुटने के प्रतिकूल दबाव बिन्दु को बदलते
हुए, पीछे की ओर भुकाया जाता है, ताकि छीलने का प्रभाव उत्पन्न हो । चोटें
आधात-स्थल की सतह पर लगभग ४५” के कोण पर होनी चाहिए । प्रत्येक
फलक निकालने के बाद खण्डक को अपनी घुरी पर (आघात-स्थल को सदैव
समान दिशा मे रखते हुए) थोडा घुमा दिया जाता है ताकि कोर के सभी
किनारो से एक के बाद एक फलक निकाले जा सकें । इस प्रकार खण्डक के
ऊपर की असमाकृतिया दूर कर दी जाती है, तथा चूकि सभी फलक एक ही
दिद्या मे निकाले जाते हैं, इसलिए समानान्तर निषेघात्मक फलक-चिन्हों के
कारण एक धघारीदार आकृति निकल आती है ।
इस प्रकार कोर की सम्पूर्ण परिधि बन जाने के बाद यह ब्लेड-फलक
निकालने के योग्य हो जाता है । इसको प्राप्ति हेतु इसे उसी तरह पकड़ कर
रखा जाता है, जेसे प्रारम्भिक काट-छाट के समय रखा गया था । तथापि, अब
प्रत्येक चोट दो पृववर्ती निषेधात्मक फलक-चिन्हों के कटान पर मारी जाती है
ताकि उनके कटान द्वारा निमित कटक कटे हुए फलक पर न्युनाधिक केन्द्रीय
कील (६८८1) बनाये । भिन्न रूप में, ऐसा प्रहार भी किया जा सकता है जिससे
एक चौड़ा ब्लेड-फलक, जिसके ऊपरी भाग पर दोनो समानान्तर कीलें हो,
निकल जाये । (सिंगर तथा अन्य, १९५६, पृ. १३४-३६ मे लीकी) ।
श्र
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