भारत में प्रागैतिहासिक प्रौद्योगिकी | Bharat Mein Praagaitihasik Praoudhogiki

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Book Image : भारत में प्रागैतिहासिक प्रौद्योगिकी  - Bharat Mein Praagaitihasik Praoudhogiki

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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युगीन सस्कृतियो मे पाये जाते हैं, लेकिन उच्च पुरा पावाण-युगीन सस्कृति अथवा सच्ची ब्लेड-फलक सस्कृतियों मे ये नियमित रूप से प्राप्त होते हैं । ऐसा माना जाता है कि इसी युग मे ब्लेड-फलक प्राप्त करने की उचित तकनीक का पता लगा था । समानात्तर किनारो से युक्त ऐसे लम्बे तथा कम चौडे फलक प्राप्त करने के लिए जिस तकनीक का प्रयोग होता था बह इस प्रकार है सर्वेप्रयम चकमक-प्रन्थि अथवा चकमक के समान बिल्लौर जैसे सुद्म कणवाले पत्थर को, ब्लेड-फलक कोर के लिए उपयुक्त चिपटा आधात-स्थल बनाने के उदद दय से, दो बराबर भागों में तोड़ दिया जाता है। टूटे हुए आधे माग की सतह यथासम्मव समतल होनी चाहिए, जहा निषेघात्मक सघात- अषं-शकु का सखोखलापन न रहे । आजकल इसे प्रस्तर-मथवा प्रस्तर-ग्रन्थि का विभाजन कहते हैं । इसके बाद ब्लेड-फलक निकालते के लिए कोर-निर्माण की क्रिया प्रारम्भ होती है । विभाजित खण्डक को (चिकनी सतहयुक्त प्रस्तर-प्रन्थि के अघ॑ को) , आधात-स्थल को ऊपर की ओर तिरछा किये हुए, घुटने से थामा जाता है । तत्पदचात्‌ एक लघु हथौडा-पत्थर से उस बिन्दु के ठीक ऊपर, जहा खडक घुटने पर थमा होता है, किनारे-किनारे धीरे-धीरे हल्की चोट की जाती है । प्रत्येक चोट के साथ कोर को, घुटने के प्रतिकूल दबाव बिन्दु को बदलते हुए, पीछे की ओर भुकाया जाता है, ताकि छीलने का प्रभाव उत्पन्न हो । चोटें आधात-स्थल की सतह पर लगभग ४५” के कोण पर होनी चाहिए । प्रत्येक फलक निकालने के बाद खण्डक को अपनी घुरी पर (आघात-स्थल को सदैव समान दिशा मे रखते हुए) थोडा घुमा दिया जाता है ताकि कोर के सभी किनारो से एक के बाद एक फलक निकाले जा सकें । इस प्रकार खण्डक के ऊपर की असमाकृतिया दूर कर दी जाती है, तथा चूकि सभी फलक एक ही दिद्या मे निकाले जाते हैं, इसलिए समानान्तर निषेघात्मक फलक-चिन्हों के कारण एक धघारीदार आकृति निकल आती है । इस प्रकार कोर की सम्पूर्ण परिधि बन जाने के बाद यह ब्लेड-फलक निकालने के योग्य हो जाता है । इसको प्राप्ति हेतु इसे उसी तरह पकड़ कर रखा जाता है, जेसे प्रारम्भिक काट-छाट के समय रखा गया था । तथापि, अब प्रत्येक चोट दो पृववर्ती निषेधात्मक फलक-चिन्हों के कटान पर मारी जाती है ताकि उनके कटान द्वारा निमित कटक कटे हुए फलक पर न्युनाधिक केन्द्रीय कील (६८८1) बनाये । भिन्न रूप में, ऐसा प्रहार भी किया जा सकता है जिससे एक चौड़ा ब्लेड-फलक, जिसके ऊपरी भाग पर दोनो समानान्तर कीलें हो, निकल जाये । (सिंगर तथा अन्य, १९५६, पृ. १३४-३६ मे लीकी) । श्र




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