विकल मीरा | Vikal Meera

Vikal Meera by अज्ञात - Unknown

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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चविक्रल मीरा (६) बस उसी दिन से, प्रभाव कुछ ऐसा पढ़ा, मोहन को / मीरा कसी, दूर न हटाती थी | इतनी थी भोली माली, क्षण ही में भूल जाती, कितनी ही बार भोग, श्याम की लगाती थी 1! मानमानी / जब चाहे, श्रारती उतारा करे; खेलती थी खेल कमी, नाचती थी याती थी 1 पविकल” बनाती मीरा, बचा सनसोहन को, नवल नवेली श्राप, बनी बन जाती थी ॥ (१०) इसी भाँति बाल क्रीड़ा, करती समोद रही, बीत गया खेल खेल ही में, मोला बालपन | चौंक चौंक चंचल, चकित चिते चारु चित्र, ्रपने को 'ाप ही / लुसाने लगी चितवन ॥ राई तरुणाई की / बयार, बिर '्राये भव्य, कंजरारी '्रखियाँ में, कजरारे श्याम घन | बज उठी / आप हृदय वीणा , '्रनायास तब, नाच उठा मीरा का, न जाने क्यों 'विकल” सन ॥ ( सत्तरह )




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