वीर शासन की उदारता | Vir Shasan Ki Udarata
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
589 KB
कुल पष्ठ :
23
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
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अर्थात् जाति नाम कमें के उदय से सभी मनुष्यों की एक ही जाति है।
कर्म, गुण, स्वभाव अथवा आजीविका वृत्ति के भेद से ही उनमें चतु्वेण
की कल्पना की जाती है । जिन का जीवन ब्रतों से सुशोभित है वे ब्राह्मण
है, जो जनता की रक्षा्थे दास्त्र घारण करते हे वे क्षत्रिय हें, जो न्याय-
पूर्वक कृषि व वाणिज्य से अर्थ उपार्जन करने वाले हैं, वे वेद्य हें और जो
दूसरों की सेवा करके जीवन-निर्वाह करते हें वे दुद्र हैं
इसी प्रकार के उद्गारों से इवेताम्बर आगम ग्रन्थ तथा श्री कुन्द-
कुल्द, समन्तभद्र, जिनसेन, सोमदेव, सोमसेन, अमितगति आदि प्रमुख
दिगम्बर-आचार्यों की कृतियां भरपूर हें । विस्तार भय से उन्हें उल्लिखित
नहीं किया जाता । बौद्ध-साहित्य में इस विषय सम्बन्धी दीघंनिकाय का
तीसरा, २७वां, १९३वां सुत्त, खुड्डकनिकाय के सुत्तनिपात, कावसेत्य
सुत्त, मज्सिमनिकाय के <८४वां, ९०वां, ९३वां, ९८वां सुत्त, तथा धम्मपद
वर्गे २६ विशेष दर्शनीय हें ॥
न केवल महावीर और बुद्ध ने ही इस प्रकार की वर्ण-व्यवस्था का
विरोध किया; बल्कि वे समस्त ब्रात्य क्षत्रिय जिनमें उपरोक्त-महापुरुषों
ने जन्म लिया था, वैदिक काल से ही इस व्यवस्था का तिरस्कार करते
चले आ रहे थे । यह ब्रात्य अहेंतों और चेत्यों के उपासक थे । वह याशिक
क्रिया-काण्ड, संस्कार विधान और वण व्यवस्था के जन्माश्रित प्रकत रूप
में श्रद्धा न रखते थे । जिन शूद्र, म्लेच्छ व पतितों का ब्राह्मण वर्ग घर्मे
क्षेत्र से बहिष्कार करते थे, उनको ब्रात्य लोग अपना कर दिक्षा-दीक्षा से
विभूषित करते थे । इस सांस्कृतिक विभिन्नता के कारण ही याज्ञिक पुरोहितों
ने स्थल २ पर ब्रात्य क्ञोगों का असुर, क्षत्रबन्घु, शूद्र मादि तुच्छता द्योतक
दाब्दों से उल्लेख किया है ! उत्तराध्ययन सूत्र-अध्ययन १२ से प्रकट हैं कि
गौतम गणघर कालीन पाइवनाथ सन्तानीय हरिकेदा श्रमण चण्डाल
जाति का था । महावीर उत्तरकाल में भी जिन-शासन का प्रवाह--जैसा कि
जेन साहित्य से विदित है-सदा उदार गति से बहता रहा । मो्ये सम्प्राट चन्द्र-
१. (अ) उत्तराध्ययन सूत्र, २५वां अध्याय
(आर) धम्मपद, २६वां वर्ग ।
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