जैन विद्या भाग - १ | Jain Vidhya Part 1

Jain Vidhya Part 1 by मुनिश्री नथमलजी - Munishri Nathamal Ji

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मुनि नथमल जी का जन्म राजस्थान के झुंझुनूं जिले के टमकोर ग्राम में 1920 में हुआ उन्होने 1930 में अपनी 10वर्ष की अल्प आयु में उस समय के तेरापंथ धर्मसंघ के अष्टमाचार्य कालुराम जी के कर कमलो से जैन भागवत दिक्षा ग्रहण की,उन्होने अणुव्रत,प्रेक्षाध्यान,जिवन विज्ञान आदि विषयों पर साहित्य का सर्जन किया।तेरापंथ घर्म संघ के नवमाचार्य आचार्य तुलसी के अंतरग सहयोगी के रुप में रहे एंव 1995 में उन्होने दशमाचार्य के रुप में सेवाएं दी,वे प्राकृत,संस्कृत आदि भाषाओं के पंडित के रुप में व उच्च कोटी के दार्शनिक के रुप में ख्याति अर्जित की।उनका स्वर्गवास 9 मई 2010 को राजस्थान के सरदारशहर कस्बे में हुआ।

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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६: संगल-पाठ प्रत्येक प्राणी मंगल की कामना करता है । वह उसके लिए प्रयत्न भी करता है, परन्तु सच्चे मंगल को बहुत कम व्यक्ति गे पहुचानते हैं। साघारण लोग नारियल, दूध, चावल श्रादि हो मंगल मानते हैं । ये लौकिक मंगल कहलाते हैं । शभ्रघ्यात्म- गगत में श्ररहन्त, सिद्ध, साधु श्रौर घर्म को मंगल कहा जाता | वे हो लोक में उत्तम हैं । जन घमं में मंगल-पाठ को नम- कार मंत्र की तरह ही मंत्र म।ना जाता है इसलिए बच्चों को पगल-पाठ कण्ठस्थ रखना चाहिए । इनकी शरण को स्वीकार 5रना चाहिए । ः उत्तारि मंगल : मंगल चार हैं-- प्ररहंता मंगल : श्ररहंत मंगल हैं, सिद्धा मेंगलं :. सिद्ध मंगल हैं, पाहू मंगल :. साधु मंगल हैं, रेवलि-पण्णत्तों घम्मो मंगल: केंवलि-भापित घर्म मंगल है । घत्तारिं लोगुत्तमा : चार लोक में उत्तम हैं- प्ररहुंता लोगुत्तमा ' अरहंत लोक में उत्तम हैं, सिद्धा लोगुत्तमा :. सिद्ध लोक में उत्तम हैं साहू लोगुत्तमा : साधु लोक में उत्तम हैं, फेदलि-पप्सपत्तो घम्मों : केवलि भापित घर्म लोक में लॉगुत्तमो उत्तम है । जैन घिया, भाग-ह ७




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