भक्त कवियों में मीराबाई के काव्य का संगीतात्मक अध्ययन | Bhakt Kaviyo Men Meerabai Ke Kavya Ka Sangeetatmak Adhyayan

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Bhakt Kaviyo Men Meerabai Ke Kavya Ka Sangeetatmak Adhyayan by रूपाली भट्टाचार्या - Rupali Bhattacharya

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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संगीत का मूल तत्व होने के कारण संगीत के सभी शास्त्रकारों ने “नाद” का न्यूनाधिक निरूपण किया। सर्वप्रथम मतंग ने “ध्वनि” अथवा “नाद” से सम्पूर्ण चराचर जगत की उत्पत्ति ब्रह्मादिय का सम्बन्ध प्राणाग्नि के संयोग से “नाद” की उत्पत्ति नाद' भेद आदि नाद से ही षड्जादि स्वरों की उत्पत्ति कही है। अभिनव गुप्त ने नाद के पर्याय “वाक” शब्द को लेकर उसके नाद रूपा और वर्णरूपा - ये दो भेद करके नादात्मिका के अन्तर्गत नाद के वर्णरहित किन्तु उतार चढ़ाव रूप उस भेद को लिया जो केवल शोकादि चित्त वृत्तियों को व्यक्त करता है। पं. शरंगदेव ने नाद में पाखटह्म के समस्त गुणों का आरोप करके संगीत में उसे नाद ब्रह्म के रूप से प्रतिष्ठित किया।' संगीत की तीनो कलाएं गायन, वादन, नृत्य नाद के अधीन मानी गई है। गीतं नादात्मकं वाद्य॑ नादत्यक्तया प्रशस्यते तदवयानुगतं नृत्य॑ नादाधीनमतस्त्रयमू। नाद के दो भेद माने गये है, आहत नाद और अनाहत नाद की महिमा मुनि लोगो ने गाई है। प्राचीन विद्वानों के कथानुसार अनाहत नाद की उपासना मुनि लोग करते थे अनाहत नाद की उपासना से मोक्ष की प्राप्ति होती थी। संगीत का प्रथम गुण रंजन प्रदान करना है। संगीत में जिस नाद का वर्णन है वह है “आहत-नाद”। अहत नाद लोग रंजन तथा भवभंजन एक साथ करता है। स नादस्त्वाहतो लोके रंजको भव भंजकः' इसके द्वारा सौन्दर्य के असीमित भेद प्रकट होते है और श्रोता को सविकल्प समाधि मिलती रहती है। आहत नाद से ही संगीत के मौलिक उपकरण स्वर की उत्पत्ति होती है स्वर की व्याख्या स्वतः रंजयति इतिस्वरः की गई है। स्वरों का प्रभाव इतना प्रबल होता है कि वह अन्तश्वेतना को स्वाभाविक रूप से अलौकिक आनन्द देता रहता है और श्रोता घंटो समाधि की अवस्था में बैठा अिअिअििििििपएएएएएएपिपिण 9. सुभद्रा कुमारी चौहान, संगीत संचयन, (अजमेर औष्ण ब्रदर्स, १६८६) पू० ६७ २. शारगदेव, सगीत रलाकर, (प्रथम भाग, द्वितीय प्रकरण) पु० ११ २. उमा गुप्त, हिन्दी के औष्ण भक्ति कालीन साहित्य में संगीत, (लानऊ लखनऊ विश्वविद्यालय, १६६०) पु० ४३.




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