सोहन काव्य - कथा मंजरी | Sohan Kavya Katha Manjari
श्रेणी : साहित्य / Literature
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
3 MB
कुल पष्ठ :
116
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)नूपति ने चहूं श्लोरा दूत दौड़ाये ।
पर कोई भी पता नहीं ला पाये
सागर तक सेवक जा जा करके श्राये ।
कहीं कंवर को खोज नहीं वे पाये ।
सेना भी कँवर को ढूढ़ ढूढ़ है हारी ।
कर्मों की रेखा टरे कभी नहीं टारी ॥ २२ ॥।
मां की झाँखों से श्रश्न,धार ना टूटे ।
मेरे भाग्य क्यों श्राज यहाँ पर फूटे।
बिना कँवर के जीवन विष की घूटें ।
वैभव के सब भोग रानी के छूटे।
शोक समुद्र में डूबे तात महतारी ।
कर्मों की रेखा टरो. कभी नहीं टारी ।। २३ ॥1
बुला नजूमी उसको सब बतलाया |
खोया मेरा कँवर नहीं मिल पाया ।
चिन्ता सारी. तजें श्राप महाराया ।
सकुशल कँवर श्रायेंगे उत्तर श्राया।
तिलभर भी नहीं भूठ दो शंका निवारी ।
कर्मों की रेखा टरे कभी नहीं टारी 1! २४ ॥।
हय के ऊपर कँवर उड़ा ही जाये ।
लेकिन हय को नहीं रोक वह पाये ।
ध्रपनी भूल पर रह रहकर पछताये ।
थक करके श्रव तो चूर चूर हो जाये ।
मेरी बुद्धि गई हाय तब मारी ।
कर्मों की रेखा टरे कभी नहीं टारो ॥ २५ ।॥॥
पांवों से एक कील तभी दव जाये ।
नभ से गिर कर श्रश्व;'घरा पर श्राये ।
धघ्राते श्राते त६ से; वह टकराये ।
भयभीत कँवर था. होश नहीं रह पाये ।
गिरने से मूर्छा श्राई उसको भारी |.
कर्मों की रेखा टरे कभी नहीं टारी ।। २६ ॥।
कई दिनों के वाद होश जब श्राया ।
भव्य कक्ष में पड़ा स्वयं को पाया ॥
इधर उधर देखा तो सिर चकराया |
न
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