क्रांति की भावना | Kranti Ki Bhavana

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Kranti Ki Bhavana by श्री मोती देवी सरावगी - Shri Moti Devi Sarawagi

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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$ रु ६ चाहिए,जालिमो को खत्म कर देना चाहिए।” लेकिन ज्योहदी कुछ शाति होती, प्रिस क्रोपाटकिन अपने वैदेशिक लहजे में बडी विनम्प्रता से बराबर यही कहते सुनाई देते--“नही, विनाश नही, हमे निर्माण करना चाहिए । हमे मनुष्यों के हृदय का निर्माण करना चाहिए।” ये दब्द तो बिल्कुल महात्मा गाधी जैसे ही प्रतीत होते है, और उन दिनो--१८९३ मे--महात्माजी ने दक्षिण अफ्रीका में वकालत के लिए प्रवेद्य किया ही था । देश का--देश का ही नही, ससार का--यह दुर्भाग्य है कि हमारे यहा ससार के प्रसिद्ध-प्रसिद्ध विचारको के विचारों का साराश निकालनेवाले विद्वान्‌ बहुत कम है, और खास तौर से आज तो जबकि दुनिया चौराहे पर खडी हुई है और उसके सामने ठीक मारे ग्रहण करने का प्रश्न उपस्थित है, यह विषय और भी अधिक महत्त्वपूर्ण बन जाता हैं । एक मार्ग है क्रोपाट- किन तथा गाघीजी का और दूसरा है माक्सं और स्तालिन का । महापुरुषों के जीवन-चरित मे अदुभुत स्फूत्ति प्रदान करने की सामथ्ये होती है, और इस दृष्टि से क्रोपाटकिन का जीवन-चरित खासा महत्त्व रखता हैं। क्या अजीब सिनेमा-जेसा दृश्य वह हमारी आँखों के सामने ला उपस्थित करता हैं ! एक अत्यत प्राचीन और उच्चवद्द मे जन्म, ज़ारशाही' के अत्या- चारो का घनघोर अन्घकार, गुलामी की प्रथा का दौर-दौरा, आठ वर्ष की उस्र से ज़ार के पाषंद बालक, १२ वर्षे की अवस्था में फ्रेच भाषा का अध्ययन और रूसी राजनैतिक साहित्य मे रुचि, अपने बडे भाई एलेक्जेडर के साथ * हादिक प्रेम, फौजी स्कूल मे शिक्षा, साइबेरिया की यात्रा--गवर्नर जनरल के ए डी सी बनकर वहा से त्यागपत्र, फिर सेट पीटर्सबर्ग के विदवविद्यालय में पाच वर्ष तक गणित तथा भूगोल का अध्ययन, क्रातिकारी दल मे सम्मिलित होना, यूरोप की यात्रा और वहा अराजकवादी संस्थाओ का सपके, रूस लौटकर क्रातिकारी विचारों का प्रचार आदि । इसके वाद का दुद्य ए जी. गाडिनर के रेखाचित्र मे देख लीजिये : “नाटक का पर्दा बदलता हैं। जाजँ॑ निकोलस की अघेरी रात दुर हो गई । लेकिन उसके वाद दासत्व-प्रथा बन्द होने के कारण थोडी देर के




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