नव - निधि | Nav Nidhi
श्रेणी : साहित्य / Literature
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
11 MB
कुल पष्ठ :
153
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)श्2 नवनांधि
८ न
राजा उठ पेठे और कुछ नर्म स्वरसे बोले-नहीं, हरदौल लड़का
नहीं है, लड़का में हूँ जिसने तुम्हार ऊपर विश्वास किया | कुलीना,
मुके तुमसे ऐशी श्राद्या न थी । मुझे तुम्हारे ऊपर घमंड था । मैं
समकता था, चौद-सूय टल सकते हैं, पर तुम्हारा दिल नहीं टल सकता |
पर आज मुझे मालूम हुआ कि यह मेरा लड़कपन था । बड़ोंने
सच कहा है कि; ख्रीका प्रेम पानीकी धार है; जिस श्रोर ढाल पाता
है, उधर ही वह जाता है। सोना ज्यादा गर्म होकर पिघल जाता है |
कुलीना रोने लगी । क्रोघकी ब्याग पानी बनकर अंँखोंसे निकल
पड़ी ! जब आवाज बदमें हुई, तो बोली--में आपके इस सन्देहकों
केसे दूर करूँ: !
राजा--हरदोलके खूनसे ।
रानी--मेरे खूनसे दाग न मिटेगा ?
राजा--तुग्हारे खूनसे और पक्का हो जायगा |
रानी--थर कोई उपाय नहीं है ?
राजा--नहीं ।
रानी--यह आपका अन्तिम विचार है १
राजा--हाँ; यह मेरा अन्तिम विचार है । देखो, इस पान-दानमें
पानका वीड़ा रक्खा है । तुम्हारे स्तीत्वकी परीक्षा यही है 1फ तुम
हरदौलकों इसे श्रपने हाथसे खिला दो । मेरे मनका श्रम उसी समय
निकलेगा जव इस घरसे हरदौलकी लाश निकलेगी |
नौीन घूखाकी इष्टिस पानके बीड़ेकों देखा और वह उलटे पैर
लोट आई )
रानी सोचने लगी--क्या हरदौलके प्राण लेँ ? निर्दोष, सचरित्र
वीर हरदौलको जानसे श्रपने सतीत्वकी परीक्षा दू £ उस हरदोलके
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