रणभेरी फिर ललकार रही | Ranabheri Phir Lalakar Rhi
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
2 MB
कुल पष्ठ :
155
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
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और खून टपके नहीं
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जागदे रहो; जागते रहो
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कृति के द्वितीय खण्ड में देश रा स्वार्धीनता-संग्राम मे हुए शहीदों क स्वपनों के
खंड-विखंडित होने की वेदना, देश के विभाजन को पाड़ा, निरंतर गिरत राजनीतिक,
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दे कन.. डाना-, हनन न अल प््ि पद न
का करवाना दे दा आल उसा दंड ने
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घ्रय्टाचार में मर-मर कर जीते
श्रप्ट चर श्रप्ट थाचरण...
नकद याद कर जन गण मन
कैसे याद करें”
हमने स्वतंत्रता-दिवस की स्वर्ण-जयंती तो मन्म लो, क्न्न्तु क्या हमाद
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