रणभेरी फिर ललकार रही | Ranabheri Phir Lalakar Rhi

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Ranabheri Phir Lalakar Rhi by वीरेन्द्र मेहता - Veerendra Mehata

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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पाए न न कि सा िमि डी भरा करे... अन७, ह् हा च्् न प.नर का उुक्-एक स्वर-लहगा इतना प्रबल है पक उनका वणन करत लखनी धनी मा: कचक का कमा: कम् ब््टी अल ्यमण्््मदर स्यममम्म्यययर! 'ॉनलगरम्यन्यर नि, श .. हा करता हा नहीं, -घमता हा नहां। खर! अत्त: एक वार फिर युद्ध के मोर्चे पर एवं अतरसंप्टीय स्तर पर सभी जगह पाकिस्तान वो मह का खानी पट ततष्ट्राच स्तर पर सभा जगह पाकस्तान का मुह का खाना पड़ा। नि प्र नि घोषणा सं “कि साया पर 2 धमाके ब» लाकन युद्ध समाप्ति का वचादणा के उपर था सामा पर तापा के धयाक व भजनगन न न नियमयज वन न न परी डी निरा सार नहीं सा 5 ड न 2-5 मुशानगयना का गजना अभा भा पूस तरह शाह नहां हुइ है| आतकवादा गाता ठाघया अमः की न यहीं रन कं एक 2 मा भा जास है। रणभरा हम यहा संदश दे रहा है : देखो आँखि पके नहीं और खून टपके नहीं वादी की वीयनियाँ यह सन्देश दे रही- जागदे रहो; जागते रहो कि इस प्रकार इस कृति के प्रथम खण्ड का आधार एवं कंद्र विंदु लगभग दा माह पं चल कर्रगेल-युद्ध एवं इस युद्ध मं अपन प्राणा का आहत दन वाल याद्धा हा रह । कृति के द्वितीय खण्ड में देश रा स्वार्धीनता-संग्राम मे हुए शहीदों क स्वपनों के खंड-विखंडित होने की वेदना, देश के विभाजन को पाड़ा, निरंतर गिरत राजनीतिक, ए दर .ग दर सामाजक-नातक-मूल्या स जानव सप एव चारा आर व्याप्त श्रध्यचार, अनाचार एवं कुशासन क प्रात आजक्राश ललकार म समाहत है। दश के 1विभानन का भूल अर विक्यल रूप घारण कर 1लया है, इसका पाइ़ा असह्ा है : न] चर 0 ते श् *प्र् बच चले दा में यह इडदिहास आज़ादी की धघधलों का अहसास आज मैं जा नया था वा आय डी श ही] 6 1 ही दा 6 ब्न्न्ड १. | 1 न्ज्| 4५ एम | 1 सर ह् थे 6 भ््न्च लड़ पड़ सुरल मे फिर से आग ये धर टू: स्वाधानदा-सग्राम का सनानया न पजस दस का आाज़ादा के लए अपन प्राणा दे कन.. डाना-, हनन न अल प््ि पद न का करवाना दे दा आल उसा दंड ने ट्झ की अच किसको हैं चिन्ता घ्रय्टाचार में मर-मर कर जीते श्रप्ट चर श्रप्ट थाचरण... नकद याद कर जन गण मन कैसे याद करें” हमने स्वतंत्रता-दिवस की स्वर्ण-जयंती तो मन्म लो, क्न्न्तु क्या हमाद




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