सत्संग के बिखरे मोती | Satsang ke Bikhre Moti
श्रेणी : इतिहास / History, धार्मिक / Religious
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
6.3 MB
कुल पष्ठ :
205
श्रेणी :
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लेखक के बारे में अधिक जानकारी :
He was great saint.He was co-founder Of GEETAPRESS Gorakhpur. Once He got Darshan of a Himalayan saint, who directed him to re stablish vadik sahitya. From that day he worked towards stablish Geeta press.
He was real vaishnava ,Great devoty of Sri Radha Krishna.
पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)६ सत्लड्के विखरे मोती
८४-जो साय हैं, वह सत्य ही रहेगा । जगतके न माननेसे
साय मिंट्ता नहीं |
८६-यदि हम वडडमतसे पास कर दें कि सूर्य कोई वस्तु नहीं
तो कया सूप हमारे एसा पास कर देने से नहीं रहेंगे ! रहेंगे ही | इसी
प्रकार सत्य वस्तु मगवान् तो किसीके न मानतेपर भी रहेंगे ही ।
ह ८७-भगवानकी प्राप्ति ही मनुष्य-जीवनका चरम और परम
उद्दइ्य है ।
८८ -जा भगवान्में मन लगाता है, वही बुद्िमान् है ।
८९-ताहि कबहूं भल कह न कोई |
गुंजा ग्रह परस मनि खोई ॥!
पारतकों छोड़कर घुँघची छेनेवाला जीब्रित रह जाता है, पर
चह तो इससे भी अधिक मूर्ख है कि जो अशत छोड़कर जहर लेता
है | विषयोंमें मन ठगाना तो अमृत छोड़कर जहर ही लेना है ।
९,०-विषयरूप जहर लेकर अमर होना चाहें; “यह कितनी
मूखता है | ' .
९.१-मजुष्य विषयोंको समीप बुलाता है और चाहता है कि
अमर रहूँ; यह कैसे सम्भव है ! ..
९२-जिसने विषयोंके मोहकों छोड़ दिया; उसने बड़ा भारी
काम कर छिया |
९.३-जो असढी घनको नहीं खोये, वहीं चवुर हैं । असछी
घन है मगवद्जन, मगवरस्मरण कर
०४-विषयोंकी चाहमें जीवन विधाद-शोकमें _ त्रीतता है|
विषयोंकों पातेके लिये जीवनभर पापकी कमाई होती हैं; जिसका
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