सत्संग के बिखरे मोती | Satsang ke Bikhre Moti

Satsang ke Bikhre Moti by हनुमान प्रसाद पोद्दार - Hanuman Prasad Poddar

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He was great saint.He was co-founder Of GEETAPRESS Gorakhpur. Once He got Darshan of a Himalayan saint, who directed him to re stablish vadik sahitya. From that day he worked towards stablish Geeta press.
He was real vaishnava ,Great devoty of Sri Radha Krishna.

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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६ सत्लड्के विखरे मोती ८४-जो साय हैं, वह सत्य ही रहेगा । जगतके न माननेसे साय मिंट्ता नहीं | ८६-यदि हम वडडमतसे पास कर दें कि सूर्य कोई वस्तु नहीं तो कया सूप हमारे एसा पास कर देने से नहीं रहेंगे ! रहेंगे ही | इसी प्रकार सत्य वस्तु मगवान्‌ तो किसीके न मानतेपर भी रहेंगे ही । ह ८७-भगवानकी प्राप्ति ही मनुष्य-जीवनका चरम और परम उद्दइ्य है । ८८ -जा भगवान्‌में मन लगाता है, वही बुद्िमान्‌ है । ८९-ताहि कबहूं भल कह न कोई | गुंजा ग्रह परस मनि खोई ॥! पारतकों छोड़कर घुँघची छेनेवाला जीब्रित रह जाता है, पर चह तो इससे भी अधिक मूर्ख है कि जो अशत छोड़कर जहर लेता है | विषयोंमें मन ठगाना तो अमृत छोड़कर जहर ही लेना है । ९,०-विषयरूप जहर लेकर अमर होना चाहें; “यह कितनी मूखता है | ' . ९.१-मजुष्य विषयोंको समीप बुलाता है और चाहता है कि अमर रहूँ; यह कैसे सम्भव है ! .. ९२-जिसने विषयोंके मोहकों छोड़ दिया; उसने बड़ा भारी काम कर छिया | ९.३-जो असढी घनको नहीं खोये, वहीं चवुर हैं । असछी घन है मगवद्जन, मगवरस्मरण कर ०४-विषयोंकी चाहमें जीवन विधाद-शोकमें _ त्रीतता है| विषयोंकों पातेके लिये जीवनभर पापकी कमाई होती हैं; जिसका




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