सत्संग के उपदेश दूसरा भाग | Satsang Ke Updesh Dusra Bhaag
श्रेणी : पौराणिक / Mythological
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
11 MB
कुल पष्ठ :
250
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)घ्चरूंरूरूरूूसरूरूरूझूसूसऊससननयऊ-- प्द्ऊखूऋ“्ररूऊज
अप किस मत के छनुयायी हैं? लि ग ७७
कुरे च पछतावे । यह मुमकिन है कि हर मांक़े पर उसको अपनी ग़लती
घ कमज़ोरी का इल्म न हो ओर जब तब इनका ज्ञान होने पर भी वह
किसी वजह से शर्मिन्दा व पशेमान न हो लेकिन सचे प्रेमी जन के लिये
ज़रूरी है कि गलती व ठोकर खाजाने के मीकों पर अक्सर अपनी गलती
' च कमजोरी से बाख़बर हो श्रोर उसका इल्म होने पर छुरे थे पछतावे ।
' हमारी राय में इन शर्तों की पावन्दी न करता हुआ कोई शख्स अपनेतई
, किसी मत का पेरो कहने का मुस्तहक नहीं है और अगर कोई सीनाज़ोरी
. करके श्रपने हक से बाहर कदम रखता है तो न सिफ़ एक नावाजिब
हरकत करता है. चल्कि जिस मत से बदद श्रपना तझल्लुक ज्ञाहिर करता
है उसे बदनाम करता है। मसलन ऐसे ब्रहुत से लोग मिलेंगे जो एक
. इश्वर) परमात्मा या खुदा में एतक़ाद ज़ाहिर करते हैं भार उस ईश्वर को
, सबंच्यापक मानते हैं और आत्मा की हस्ती में विश्वास रखते हुए उसको
_ इन्सानी वजूद का असली जहर तसलीम करते हैं और खास पवित्र
ग्रन्थ या प्राचीन चुजुर्गी में श्रद्धा ज़ाहिर करते हैं ओर इनकी बुजुर्गी
व महिमा का पक्ष लेकर दूसरे मतों की पवित्र पुस्तकों और बुजुर्गों की
दिन रात जुक्ाचीनी करते हैं लेकिन खुद न अपने पवित्र श्रन्थों के
समकन की काबिलियत, न अपने घुजुर्गा की सी रहनी गहदनी इख़्तियार
करने का शक रखते हैं श्र न इंश्वर थ आत्मा के साक्षात्कार
करने के लिये काई कोशिश व यल्र करते हैं बल्कि अगर कोई इनके दायरे
' से बादर का यत्न घ्रतलाने वाला शख्स मिल जावे तो उसकी बात समकना
; हे दरकिनार, सुनने के लिये भी तयार नहीं हैं । वे ऐसे शख्स की मोजू-
| दगी से यही नतीजा निकालते हैं कि वस: हमारा मजहब झूठा होगया और |
कि नव अल किया न कक वकवलकककवकामयण
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