सत्संग के उपदेश दूसरा भाग | Satsang Ke Updesh Dusra Bhaag

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Satsang Ke Updesh Dusra Bhaag by ब्रजवासी लाल - Brajvasi Lal

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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घ्चरूंरूरूरूूसरूरूरूझूसूसऊससननयऊ-- प्द्ऊखूऋ“्ररूऊज अप किस मत के छनुयायी हैं? लि ग ७७ कुरे च पछतावे । यह मुमकिन है कि हर मांक़े पर उसको अपनी ग़लती घ कमज़ोरी का इल्म न हो ओर जब तब इनका ज्ञान होने पर भी वह किसी वजह से शर्मिन्दा व पशेमान न हो लेकिन सचे प्रेमी जन के लिये ज़रूरी है कि गलती व ठोकर खाजाने के मीकों पर अक्सर अपनी गलती ' च कमजोरी से बाख़बर हो श्रोर उसका इल्म होने पर छुरे थे पछतावे । ' हमारी राय में इन शर्तों की पावन्दी न करता हुआ कोई शख्स अपनेतई , किसी मत का पेरो कहने का मुस्तहक नहीं है और अगर कोई सीनाज़ोरी . करके श्रपने हक से बाहर कदम रखता है तो न सिफ़ एक नावाजिब हरकत करता है. चल्कि जिस मत से बदद श्रपना तझल्लुक ज्ञाहिर करता है उसे बदनाम करता है। मसलन ऐसे ब्रहुत से लोग मिलेंगे जो एक . इश्वर) परमात्मा या खुदा में एतक़ाद ज़ाहिर करते हैं भार उस ईश्वर को , सबंच्यापक मानते हैं और आत्मा की हस्ती में विश्वास रखते हुए उसको _ इन्सानी वजूद का असली जहर तसलीम करते हैं और खास पवित्र ग्रन्थ या प्राचीन चुजुर्गी में श्रद्धा ज़ाहिर करते हैं ओर इनकी बुजुर्गी व महिमा का पक्ष लेकर दूसरे मतों की पवित्र पुस्तकों और बुजुर्गों की दिन रात जुक्ाचीनी करते हैं लेकिन खुद न अपने पवित्र श्रन्थों के समकन की काबिलियत, न अपने घुजुर्गा की सी रहनी गहदनी इख़्तियार करने का शक रखते हैं श्र न इंश्वर थ आत्मा के साक्षात्कार करने के लिये काई कोशिश व यल्र करते हैं बल्कि अगर कोई इनके दायरे ' से बादर का यत्न घ्रतलाने वाला शख्स मिल जावे तो उसकी बात समकना ; हे दरकिनार, सुनने के लिये भी तयार नहीं हैं । वे ऐसे शख्स की मोजू- | दगी से यही नतीजा निकालते हैं कि वस: हमारा मजहब झूठा होगया और | कि नव अल किया न कक वकवलकककवकामयण




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