बीसवीं सदी की आखिरी रात | Bisavin Sadi Ki Akhiri Rat

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Bisavin Sadi Ki Akhiri Rat by ओम प्रकाश सिनहा - Om Prakash Sinha

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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जी सेधियाज बहुत भारो-भरकम श्ौर भहदीससा चेवेरिया-सिवासी था, जो किसी. हिसात्मक अपराध के कारण कसेट्रेगन कंम्प में श्रा गया था । वह बड़ी मोटी बुद्धि का झादमी था इसलिये हम उसे हिबारल के श्रति- रिक्त श्रौर कुछ नहीं कहते थे । वह श्रपने को स्वय श्रपने ही अन्दर सीमित रखना पसद क्ररता था, श्रौर मौका मिलने पर श्रपनी मर्जी के मुताबिक काम भी किया करता था । शझ्रगर कोई उससे किसी श्रन्य टोली की मदद करने को कहता तो वह श्रपनी वाहो के बल्ले हिला कर बेविरियाई बोली में कहता--''मै ऐसा मूखं नही हूँ ' तुम चाहते हो कि सारा काम मै कर दूँ घ्ौर तुम सब लोग मजे उडास्यी, क्यो *”' श्रौर जव उसे किसी ठटोली में काम करने का द्रादेश दे दिया जाता तो वह ग्रपने हिस्से से कम काम करता, इस भय से कि कही उन लोगों का काम हल्का न हो जाय जो उस जैसे हट्ट-कट्टें श्रोर शक्तिशाली न थे। यदि कोई उसके खिलाफ गुर्रता तो वह जवाव देने की भी कभी परवाह न करता, ग्रौर यर्दि हम राजनीतिक कैदी उसकी मोटी बुद्धि मे भाईवारे के व्यवहार का कोई विचार बैठाने की कोशिश करते तो वह घुरा से मुंह फेर लेता | “प्रोफ तुम और तुम्हारी लग्वी तकरीरे हमेशा सूर्खतापूर्ण बकवास करते हो । तुम लोगों तुम राजनीतिज्ञ लोग ते कुछ भी नहीं किया, चह कंदी * १७




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