शमशेर नागार्जुन एवम त्रिलोचन की काव्य - संवेदनाओं का तुलनात्मक अध्ययन | Shamasher, Nagarjun Avam Trilochan Ki Kavya Sanvednaon Ka Tulanatmak Adhyayan
श्रेणी : साहित्य / Literature
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
33 MB
कुल पष्ठ :
350
श्रेणी :
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लेखक के बारे में अधिक जानकारी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)उपलब्ध होती हैं मनोविज्ञान कोश के अनुसार संवेदना चेतना की वह अवस्था है जो किसी एक
इन्द्रिय के उत्तेजित होने पर उत्पन्न होती है और जिसका तात्विक विश्लेषण नहीं किया जा सकता
है। अन्य मनोविज्ञान शब्द कोश के अनुसार “-१
इन्द्रिय ज्ञान का वह अन्तिम तथा अपरिवर्तनीय अश जो उत्तेजना पर आश्रित होते हुए भी इन्द्रिय
संग्राहको को प्रभावित करता है। जो वास्तव में अमूर्तिकरण है। सामान्यत' शीरर विज्ञानव मनोभौतिकी
की प्रक्रिया प्रारंभिक अनुभव के रूप में पर्णित होती है ।”-२
इस प्रकार मनोविज्ञान शास्त्र मे सवेदना का अर्थ ज्ञानेद्रिय से प्राप्य प्रमावों के रूप मे जाना
जा सकता है। साहित्य में सवेदना शब्द का प्रयोग सामान्यत सवेगात्मक मन: स्थितिया के लिए
प्रयुक्त होता है जबकि मनोविज्ञान मे इसका अर्थ बाहय पर्यावरण से प्राप्त होने वाली उस उत्तेजना
के रूप मे लिया जाता है जिसे हमारी इन्द्रिय ग्रहण करती है इन्द्रियो द्वारा ग्रहीत उत्तेजना की वृहद
मस्तिष्क व्याख्या करता है जिसके कारण उत्तेजना प्रत्यसीकरण अथवा ज्ञान में बदल जाती है।
मनोविज्ञान शास्त्र में साहित्य व्यवहछत संवेदनाके समानार्थक सवेग (इमोशन) और भावना (फीलिग)
शब्द है। मनोविज्ञान में इन शब्दों की भी व्याख्या मिलती हैं
संवेग की परिभाषायें विभिन्न मनौवैज्ञानिकों द्वारा विभिन्न प्रकार से दी जाती है। वे सब
परिभाषायें इस ओर संकेत करती है कि “संवेग' एक जटिल भावात्मक मानसिक प्रक्रिया है। जिस
समय भाव की अभिव्यक्ति बाह्य एवं आंतरिक शारीरिक परिवर्तनो में हो जाती है। तो उसे हम
'संवेग' कहने लगते है। सवेग की जो परिभाषा पी.टी यंग ने दी है, वह उपयुक्त प्रतीत होती है।
इनके अनुसार सवेग सम्पूर्ण व्यक्ति में तीव्र उपद्रव करने वाला हैं जिसका उद्गार मनोवैज्ञानिक होता
है तथा जिसके फलस्वरूप व्यवहार चेतना अनुभूति अंतरावयव सबंधी क्रियाये होती है। -२ - पी टी.
यंग $ $ 800 की पुस्तक जनरल साइकोलाजी से उद्घृत
जबकि भाव भावना या फीलिंग एक प्रारम्मिक सरल मानसिक प्रक्रिया है जो प्राणी को सुख
की अनुभूति कराती है। एक प्रारम्भिक सरल मानसिक प्रक्रिया होने के कारण इसका विश्लेषण सम्भव
नहीं है फिर भी मोटे तौर पर हम इसे निम्नांकित आधारों पर जान सकते है-
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२- जेम्स ड्रान डिक्शनरी आफ साइकालाजी पृ०-२६४
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