आधुनिक काव्य में सौन्दर्य - भावना | Aadhunik Kavya Men Saundarya-bhawana
श्रेणी : साहित्य / Literature
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
24 MB
कुल पष्ठ :
237
श्रेणी :
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लेखक के बारे में अधिक जानकारी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)हद आधुनिक काव्य में सौन्द्य-भावना
न्सीन्दर्य बाह्य जगत् में अनन्त: सौन्दर्य-निधि श्रात्मा का दिव्य संकेत
है । उस परम सौन्दर्य का ही नास परसानन्द या ब्रह्मानन्द है ध्ौर उसी
परम सौन्दर्य का अंश जिन-जिन पदार्थों में, जितनी मात्रा में तथा जितनी
सूशष्मता से श्रनुभूति का विषय होता है वह वस्तु उतनी ही सुन्दर होती
है। इससे स्पष्ट कि है कि आत्मा, परमात्मा तथा सौन्दर्य में केवल दृष्टि-
मेद है, तात्विक अन्तर नहीं । ब्रह्म केवल साया. के रूइंगातिद्दस ्यावरण
के कारण लोकात्सा से भिन्न आभासित होता है, अन्यथा सिनन होने पर भी
घ्यरमिन्न है ।
बाधुनिक काव्य-जगत में परमात्मा का रूप सत्यं शिव सुन्दर माना
जा रहा है । ्ात्मा उसका ध्ंश होने के कारण इन गुणों से परिपूर्ण
बतः सूक्ष्म ोर स्थूल जगत् में जहां भी आत्मा की अभिव्यक्ति होगी वहां
सत्य, शिवं, सुन्दर को सत्ता वतंमान रहेगी। यह वस्तुत: ब्रह्म की
तीन उपाधियां हैं । उनका मूल एक ही सत्य है जो श्नुभूति-समन्वित होने
पर सौन्दर्य की प्रतीति कराता है । सौन्दर्य ही कार्य-रुप में परिणत होने
पर संगलमय हो जाता है। सत्य जब श्रातिभ ज्ञान की उपाधि के भीतर
रहता है तब दर्शन का रूप धारण कर खेता है, जब झरलुभूति बनता है
तब सुन्दर लगने लगता है, जब कार्यरूप में परिणत होने लगता है तब
मंगल का रूप श्राप्त करता है । किन्त साहित्य में सौन्दर्य श्र मंगल दोनों
की साधनावस्था तथा साध्यावस्था चतमान रद्दती है । इस लिए दोनों एकत्र
हो कर आरा सकते हैं । मंगल से हसारे मनका विचित्र मेख है । श्रत्येक
वस्तु में हमारी मंगल-कामना निहित है। हम जो कुछ करते है मंगल के
लिए, पूजा, पाठ, दान-घर्म, छादि सब मंगल के दी कारण हैं । किन्तु इस
संगल के मूत का संचालन करने वाली इत्ति आनन्द की ही इत्ति है ।
आनन्द के लिए ही तो मंगल-कार्यो की सष्टि हुई । कुम्भकार सत्तिका से
पात्र बनाता है, उन्हें विभिन्न नाम प्रदान करता है । इस प्रकार नाम-भेद होने
पर भी उनके मूल में एक ही वस्तु है सत्तिका, नास-रूप हटा देने पर एक
ही वस्तु दोष रह जाती है ।
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