राजीव गांधी के प्रधानमंत्रीत्वकाल 1984 से 1989 में भारत का पड़ोसी देशों से सम्बन्ध | Rajiv Gandhi Ke Pradhanmantritwakal 1984-1989 Men Bharat Ka Padosi Deshon Se Sambandh
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
9 MB
कुल पष्ठ :
273
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)का बोझ उठा रहा था । नेहरू जी इस बात को भलीभॉति समझते थे
कि यदि विश्व शान्ति अक्षत नहीं रखी जा सकी तो अफ्रीका और
एशिया के अनगिनत देशो को आजाद होने का मौका नही मिलेगा ।
जब तक बडी शकक््तिया सघर्षरत रहेगी उन्हे सामरिक दृष्टि से
साम्राज्यवादी रणनीति के अनुसार अपने-अपने प्रभाव क्षेत्र बनाने ही
होगे |इन प्रभाव क्षेत्रो के अन्तर्गत आने वाले छोटे राष्ट्र-विपनन
समाज ऐसी हालत मे स्वाधीनता की कल्पना ही नहीं कर सकते
नेहरू जी ने यह बात बहुत पहले आत्मसात कर ली थी कि विकास
और विनाश के बीच गहरा अन्तर-सबध है। जब तक विश्व पर युद्ध
के बादल मडराते रहेगे, तब तक विकासशील-नवोदित राष्ट्रो के लिए
राष्ट्र निर्माण के ससाधन सुलभ नहीं हो सकते* । नेहरू यूरोप मे
महायुद्ध तथा अफ्रो-एशियाई देशो मे गृहयुद्ध के अपने निजी अनुभवों
से यह बात भलीभाँति समझते थे कि युद्ध का दबाव अन्य सभी
समाजिक प्राथमिकताओं को पीछे धकेल देता है वह मनुष्य के
पाशविक पक्ष को उकसाता-उभारता है तथा अधिनायक को बढावा
देता है। फासीवाद-नाजीवाद का उदय प्रथम विश्वयुद्ध के मलबे के
बिना सम्भव नहीं था परमाणु अस्त्रो के अविष्कार ने नेहरू जी के
शॉन्तिवादी चिन्तन को और पुष्ट किया | भारत की स्वाधीनता को
सार्थक बनाने तथा विकास की गति तेज रखने के लिये विश्व शान्ति
अनिवार्य थी, इसीलिये नेहरु जी ने अपने विदेश नीति नियोजन मे
विश्वशान्ति को प्राथमिकता दी |
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