समग्र ग्राम सेवा की ओर (खण्ड १ -२ ) | Samgra Gram Seva Ki Or Khand-1-2

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Samgra Gram Seva Ki Or Khand-1-2 by जे बी कृपलानी - J.B . Krapalani

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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सेदक की सड़चल न है। बे इसारी सददातुमूति के चोडे-से शम्द मी बरदारत नहीं कर सकते | इसलिए अगर इस गाँव के धम्दर कुछ करना 'ाईें; हो इसमें उनके सेवा- कार्य के योग्य बनना होगा श्र उसी प्रकार की सनोइति सी बनानी पह़ेगी। तमी बे इर्में प्रददा कर घकते हैं, झम्पय्य नहीं ! शहर का शिक्षित समा पश्चिमी सम्पठा के चक्कर में पड.र अर '्रपनी झार्यिक सुबिधाझों के झमिमान के कारश गाँव की बिशेपताएँ समस ही नहीं रुऊता पे भीगन मैं उनका झम्बाठ करना तो बहुत दूर की बात ै। इसलिए प्राम-सेबक्त ब्ये काफी समप तक अनुकूश परिस्थिति में यइकर ्पने-भापकों दसी सेया के योग्य बनाना पड़ता है। मैं यो भ्राव थौड़ी ठेवा इेदाठ मैं कर पा खा हूँ, इसके लिए मुमे; मी बड़ी तैयारी करनी पढ़ी थी । जद सब एक लम्बी कहानी है, जिसे में पिर कमी शिलेंगा ! पर्दे मैं बहुत स्वस्प हूँ । झाराम लूग मिल रहा है । कक ७




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