वाग्भटालंकार | Wagvh Talankara Ac 74
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
8 MB
कुल पष्ठ :
248
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)१०) वार्भटालंकार-परि० है.
संप्षेपेण उक्तस्य छोकपादादे' शेषस्य पूरणा्थ
कृतप्रश्नरुपायां तद्थोनुगतं समस्याधीनुगतम् ॥१ डे॥
अधथे-समस्यामें पराये काव्यका महण ( पराये अर्थ अथवा
पदादिका प्रहण ) होजाना कविका गुण होताहै क्योंकि वह
समस्याके अर्थके अनुगत नवीन अधथंकी रचना करताहै, ( और
पदार्थ तथा पर पदोंका परिज्ञान भी समस्यापरतिमें एक दूसरे
कविको नहीं होता इससे य्रदि दो कवियों या कई कवियोंका
आदय अथवा पद एक भी हो तो एक दूसरे कविका गण होता
है दोष अथांत् चोरत्व नहीं चोरतव जभी होताहे कि जब जान
बूझकर कवि दूसरके आशय या रचना पदादिका अ्रहणकरे )
( समस्या उसे कहतहें जहां अंतका पद या कोइ अंश बताकर
उस छोकादिकी तदनुसार पूर्ति करनेका प्रइन हो ) ॥ १३ ॥
दोहा-अन्य कविनके अथंपद, ग्रहण चोर सम होय ।
अपर समस्या पृतिमें, राण कहलावत सोय ॥
मनःप्रसत्तिः प्रतिभा प्रातःकालोभमियो-
गता । अनेकशाख्रदर्शित्वमित्यथोलोक
हेतवा ॥ १४ ॥
टीका-मनःप्रसत्तीत्यादयः अयोलोकहेतवः दाति
सरलान्वयः ॥ मनःश्रसत्तिः मनसः प्रसन्नता प्रतिभा
पूर्वोक्ता सत्कवेबुद्धिः प्रातःकालप्रभातसमयः अभियो-
गता विलक्षण पदार्थादीनामवलोाकनसंयोगत्वम। प्रातः
कालेमियोगिता इति वा पाठ । तत्र प्रभाते रचनायां
प्रवतनमिति अनेकशाख्रदर्शित्व॑ अनेकशास्राणामलो-
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