समकालीन दर्शन | Contemporary Philosophy
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
4.58 MB
कुल पष्ठ :
214
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)6. समकालीन दर्शन
(००ा८ा0४10 निकाला जाता है। उस निष्कर्ष का सत्यापन (१८11र001107 ही
बिया जाता है। भकारिव निगमंत के समय अनुमान के अं वी ओर ध्यान देनें
की आवश्यकता नही है। उसमें यही देखना पर्याप्त है कि तक बाकारिक (छिए-
81) दृष्टि से शुद्ध है या नहीं ।
अपने चिन्तन मे उन्होंने अन्त में ताकिक अनुभवदाद (0ट्ाए्य घाणुटा-
लए) पर विशेष रूप से बल दिया । उनके इस सिद्धान्त वा सार यह है कि
किसी उमित्त की यधार्थत्ता अथवा अगधार्थत्ता वो हम केवल वैज्ञानिक विधि के
प्रधोग-द्वारा जान सकते हैं। तत्त्वज्ञान (८1 8]095105) की उवितयों की
यंथार्थता का हम इस वैज्ञानिक विधि के द्वारा पत्ता नहीं लगा सकते । अत तत्व
ज्ञान के प्रत्यय, जैसे ब्रह्मा (10८ 95106), ईश्वर (000), आत्मा (बढ)
इत्यादि अथंहीन हैं । तुत्वज्ञान को हम यथाय॑ ज्ञान ने क्षेत्र म नहीं रख सबते 1
वह इस निष्कर्ष पर पहुंचे कि वैज्ञानिक अनुसघान ही ज्ञान का साधन हो
सकता है। हम बेवल विज्ञान के तकंशास्त्र (10810 01 धटाधा0८) का ही अध्ययन
करना चाहिए। उन्होंने यह मत निर्धारित किया कि सभी._..विज्ञानो की भापाओं
को भोतियी (ए0४81८5) वी भापा में परिवर्तित किया जा सकता है। मनो-
विज्ञान की भाषा को भी वह भौतिकी की भाषा मे हक का आवा मस्यगत करत ने पक्ष मेहो «
गये। ब्यंवहारवादी मनोविज्ञान (988#श०्ण 8८ फरशलमेठग को ही
उन्होंने आदर्श मनोविज्ञान माना और इस मत का प्रतिपादन करने लग गये कि
सब मनोविज्ञान मानव देह और उसके व्यवहारो में ही परिसीमित हैं। अत हम
मनोविज्ञान को भी सरलता से भौतिकी की भाप। में व्यवत कर सकते हैं । विज्ञान _
ही सब ज्ञान का आधार धन सकता है। हम जान केवल उसी को कहू सकते हैं
“जो मर्थपूण उपस्यापना के ' दास च्यकत किया जा सकें विज्ञान हो ऐसे ज्ञान का
आदशं है । बेज्ञानिव भाषा का तारिक विश्लेषण ही हमारा ध्येय होता चाहिए ।
विज्ञान का शान अनुभवजन्य होता है। अत विज्ञान बौर उसका तकंशास्त्र
ही महत्मपूर्ण है । तत्वज्ञन या तत्त्व मी मासा निरथंक है । हम अनुभवाधित तथ्यों
का बैजानिव' परीक्षण कर सकते हैं किन्तु तत्त्वज्ञान की उपस्थापनाओ बा परी-
कण सम्भव नहीं है ।
वानंप वा मत है वि हम बैज्ञादिक तथ्य का पुष्टीकरण उद्गमनात्मक तक
(10व0८0४६ 10ट्राट) दारा वर सकते हैं। उन्होंने उदूगमनात्मक विधि की
आाधुनिव ढंग से सुन्दर ब्यास्पा की है ।
बार्नप वे चिन्तए वा सार यही है कि हम केवल अनुभव द्वारा ही ज्ञान प्राप्त
बर समते हैं। अनुभवजन्य ज्ञान भौतिक जगत् वा ही हो सकता है। इस ज्ञान
को हम भौतिवीय भाषा से व्यवत बर सबते हैं । इस ज्ञान वा हम उदगमनात्मता
तबं द्वारा वेज्ञानिव परीक्षण मर सबते हैं। ततत्वज्ञान अनुभवाधित नही होता
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