मोरी धरती मैया | Morii Dharatii Maiyaa
श्रेणी : साहित्य / Literature
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
9 MB
कुल पष्ठ :
226
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
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गनपत मनाय गोरी, शंकर प्रधानिए ।
वैदिक प्रमान पृथ्वी कौ, छान छानिए ॥।
दास्य-इयामला पृथ्वी का सुन्दर स्वरूप हमें ग्रामों में देखने को मिलता है ।
हमारी भारतमाता धरित्री है, जो ग्रामवासिनी है, जिसके श्राँगन में सर्देव
रत्नदीपों का प्रकाश श्रठखेलियाँ करता है ; गंगा-यमुना जिसके पैरों को पखारती
है श्रौर इयाम जलघर जिसके रेशमी केशों को धोते है श्रौर पवन उन्हें सुखाता
रहता है ; कमल जिस धरती मंया के पर है श्रौीर सागर जिसकी मेखला
( करघनी ) है उस धरती माता का सुपुत्र किसान ही है। उसकी सेवा ही
सच्ची सेवा है । उसकी श्रचंना में भक्ति का पूर्ण प्रवाह है ।
श्रषाढ़ के महीने में जब श्राकाद मेघों से घिर जाता है श्रौर जड़ल हरा-
भरा दिलाई देने लगता है, तब किसान का मन उमंगों से भर जाता है । उपके
कंठ से श्रनायास ही गीत निकलने लगते है श्रौर वह गा उठता है :---
धरती माता तने काजर दए,
सेंदरन भर लई माँग ।
पहर हरि श्रला ठाँडी भदइ,
तेने मोह लयो जगत संसार ॥।
पृथ्वी के दो हाथों की विशेषता है । एक में प्रलय गु जता है श्रौर दूसरे में
सर्डि उमंगें भरती है । झाँधी, प्रलय की भयंकर मूर्ति है श्रौर वर्षा सृष्टि का
प्रतीक है । इस गहन भाव को एक श्रदिक्षित किपान हल चलाता हुम्रा श्रपनी
साधारण भाषा में कितने भोलेपन से प्रकट कर रहा है :--
धरतो मात तो में दो भए,
इक ऑआाँधी इक मेय* ।
मेय के बरसे साखा 'भई,
जा में लिपट लगे संतार ॥।
जगजननी भगवती सीता ऐ्रथिवी की ह। प्रतिरूप है । गोस्वामी तुलसीदांसजी
१ मेघ।
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