रहिमन विलास | Rahiman Vilas

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Rahiman Vilas by ब्रजरत्न दास - Brajratna Das

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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( १४ ) इधर उधर तुके छिपे बैठे थे झपने करने के शब्द का पहचान कर दोड़ झाये । यह राजिभर होता रहा जिससे सुबह होते होते सात ब्ाठ सदर सेना एकत्र हो गई । सुहदेल खाँ को भी सब पता लग चुका था पर उसके पास लगभग बीस पचीोस सहस्न के सेना थी इससे वह डठ कर जमा हुमा था । खानस्वानाँ ने यह विचार कर कि सेना कम हे उजेला हाने पर पर्दा खुल जायगा इसलिये पो फटने के समय की घंघलाइट में बिगड़ी बात बनाने की इच्छा से धावे को अ्राज्ञा दे दी । दोलत खाँ लॉदी ने कहा कि इतने शत्र पर घ्याक्र- मण करना प्राण गँवाना है । एक काम कीजिये, मेरे पास छ सौ सवार हैं, मुस्के झाज्ञा दीजिये कि में शत्र पर पीछे से घावा करूँ खानखानों ने कट्दा कि दिल्‍ली का नाम न है ज्ञायगा । उसने उत्तर दिया कि यदि शत्र को परास्त कर सके सा सो दिल्‍ली स्थापित कर लेंगे झौर यदि मारे गये तो ईश्वर ज्ञाने । सय्यद कासिम बारह भी दोलत खाँ के साथ था | उसने कद्दा कि हम तुम हिन्दुस्तानी है, हम लागों के लिये सत्यु छाड़ दूसरा उपाय नहीं है पर खानखानाँ की इच्छा ता पुछु लें । तब दोलतत खाँ ने नवाब से कहा कि शत्रु की सेना बुत है झ्ौर विजय ईश्वर के हाथ है । थदि पराजित हुए ते ब्ापका इस तलाग कहाँ हृदेंगे। खानखानाँ ने उत्तर दिया कि 'लाशों के नीचे । इसके ध्नन्तर जब खुद्देल खाँ अपने स्थान पर से दिला तब सानसाारनां ने उस पर सामने से घावा किया । दोनों घोर के सिपाही एक दिन श्र एक रात्रि के भूखे प्यासे घौर थके हुए होने पर भी जी तोड़ लड़े पर जब दोलत खाँ बड़े वेग से पीछे झा थिरा तब सुददेत खाँ की सेना में गड़बड़ी घ्पोर सगदड़ मच गई । सुदेल स्वाँ स्घयं घायल हा गया था झौर उसे उसके साथी किसी प्रकार निकात्ल लेगये | थोड़ी देर में मेदान साफ दगया घोर खानखानाँ की विजय




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