राजस्थान में हिंदी के हस्त लिखित ग्रंथ की खोज( भाग २) | Rajasthan Me Hindi Ke Hast Likhit Granth Ki Khoja Bhag Ii

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Rajasthan Me Hindi Ke Hast Likhit Granth Ki Khoja Bhag Ii by श्री सेठ केसरीचंद्रजी चतुर - Shri Seth Kesrichandraji Chatur

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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हि $ पुरुपोत्तमजी मेनारिय। के सुपदे कर दिये। मेरी हस्तलिपि बड़ी हुप्पाव्य दै और भेनारियाजी ने जो विवरण लिये वे भी घडढी उतावली में लिये थे अतः प्रेस कापी करने करवाने क। श्रम भी सेलारियाजी ने दी उठाया । विवरण लिखने की पद्धति-- प्रस्तुत प्रन्थ में विवरण संप्रह की पद्धति में 'छापकों कई नवीनताएं प्रतीत होंगी अतः उनके सम्बन्ध में स्पष्टीकरण करदेना '्ावश्यक है । प्राचीन दस्तलिखित प्रतियों के शवलोकन एवं सूची बनाने में सेंगी ्यत्यधिक्र 'झभिरुचि रही है। मेरे साहित्य साधना के १८ त्रपे चहुत्त कुछ इसी काये म चीते हैं । पश्धात्य एवं भारतीय नेक विद्वानों के सम्पादित पचार्सों सूचीपत्रों ( जितने भी अधिक मुमे ज्ञात हुए व मिल सके ) को देखा एवं ४० हजार के लगभग प्रतियो की सूची तो मैंने स्वयं घनाई है त: उसके यर्नकिचित्त्‌ 'प्चुभव के वल पर मुमें प्रचलित पद्धति मे छुछ सुधार करना 'झावश्यक प्रतीत हुआ । मेरे नख्र मताजुसार विवरण में झपनी और से कम से कम लिखकर प्रन्थकार, ग्रन्थ एवं प्रति के सम्बन्घ में ग्ाप्त प्रति से ही श्ावश्यक चद्धरण छ्रघधिक रूप में लिया जाना ज्यादा झच्छा है। पाठकों को चतलाने योग्य जो कुछ सममा जाता दैं. वद्द ग्रन्थकार के झाव्दों दी में रखा जाय तो उसकी प्रमाणिकता बहत बढ़ जायगी । विवरण लिखने वालो की जरासी सावधानी या भूल-भ्रान्ति से परवर््ती पचासों ग्रन्थ उस भूल के शिकार हो जाते मैंने स्त्य॑ देखा है. क्योंकि उसको प्रमाण माने बिना काम चलता नहीं श्र उसके अननुकरण मे जितने भी व्यक्ति लिखेंगे सभी उसी भ्रान्ति को दुद्दराते जायेंगे । मौलिक अन्वेपण व जाँच कर लिखने वाले हैं कितने ? 'झत: मैंने श्रन्थ के उद्धरण अधिक प्रमाण में लिये हैं छोर 'पनी शोर से छुछ भी नहीं या कम से कम लिखने की नीति वरती है। ग्रन्थ का नाम, प्रन्थकार उनका जितना भी परिचय ग्रन्थ में है, ग्रन्थ का रचनाकाल, प्रन्थ रचने का आधार आदि लातन्य जिस अन्थ सें संत्तेप या विस्तार से जितना मिला विचरण में ले लिया है जिससे प्रत्येक व्यक्ति ऊपर निर्दिप्ठ मेरे लिखतसार को स्वयं जांचकर निणेय कर सके । जददँतक दो सका हैं. ्रन्थ के पद्यों की संख्या का भी निर्देश कर दिया है | झपनी निधारितनीति को में सर्वत्र नददीं वरत सका, इसका कारण हैं विवरण तैयार करते समय सब प्रतियों का सामने न होना । कई संप्रह्मालयों के वर्षों पहले एवं उतावल में नोट्स कर लिये गये थे ्यौर विवरण तैयार करते समय प्रतियें सामने न थी । 'झतः पूवे- कालीन नोट्स का ही उपयोग कर संतोप करना पड़ा । प्रति के लेखनकाल के सम्बन्ध




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