विज्ञानं पत्रिका | Vigyan Patrika
श्रेणी : विज्ञान / Science
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
13 MB
कुल पष्ठ :
52
श्रेणी :
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लेखक के बारे में अधिक जानकारी :
No Information available about डॉ शिवगोपाल मिश्र - Dr. Shiv Gopal Mishra
पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)काफी विचार-मंथन के बाद ही दिए गए।
नोबेल पुरस्कारों की प्रतिष्ठा और इनको प्राप्त
करने वाले व्यक्तियों के शोध की उत््कृष्टता के बारे में
तो अधिक विवाद नहीं उठे हैं परन्तु कभी कभी ऐसा
प्रतीत होता है कि कुछ व्यक्तियों के साथ नाइन्साफी
हुई है। कभी कभी तो ऐसा शोधकार्य की समाप्ति और
पुरस्कार की तिथि के वृहत काल-अन्तराल के कारण
हुआ है । उदाहरण के लिए 1995 में मार्टिन पर्ल (१५21-
पा १) को टाउ लेप्टान की खोज और फ्रेडरिक
राइन्स (फाध्ताट: हिह1165) को न्यूट्रिनों के सत्यापन के
लिए पुरस्कृत किया गया। न्यूट्रिनों के सत्यापन वाले
प्रयासों में राइन्स के साथ कोवन (0०0छ/8४0) ने 1950 के
दशक में लगातार कार्य किया था परन्तु नोबेल पुरस्कार
में 40 वर्ष की देर हुई । इस बीच कोवन की मृत्यु हो गई
थी और वे नोबेल पुरस्कार नहीं पा सके थे।
नोबेल समिति ने अनेक बार किसी तथ्य की
प्रागुक्ति और उसके प्रायोगिक सत्यापन दोनों ही कार्यों
के लिए नोबेल पुरस्कार दिया है। उदाहरण के लिए
1929 में प्रिंस डि ब्रायग्ली (?पं0०८ 0६ छा०्ट्र८) को
इलेक्ट्रान की तरंग प्रकृति के सैद्धान्तिक उद्घाटन के
लिए और 1937 में डेविसन (08५5500) और जी.पी.
टामसन (0.0. पफ0एए50ए0) को इसे प्रायोगिक सत्यापन
के लिए पुरस्कृत किया। परन्तु 1957 में ली और यांग
(1.66 भा १9) को पैरिटी संरक्षण की वैधता को
सैद्धान्तिक चुनौती देने के लिए तो पुरस्कृत किया गया
परन्तु मदाम वू (0/2690 १४४9) जिनके प्रयोगों ने ली
और यांग की प्रागुक्ति को प्रयोग द्वारा सत्यापित किया
उन्हें पुरस्कार में अंश नहीं दिया गया | 'ऐसा नहीं था कि
तीन व्यक्तियों को एकसाथ पुरस्कृत करने के विरुद्ध
कोई नियम था | शायद यह समिति के सदस्यों की स्त्री
वैज्ञानिकों के प्रति भावना का परिचायक रहा हो। इसी
प्रकार 1944 में ओटोहान (0६00क्षण्0 को रसायन
शास्त्र का पुरस्कार नाभिकीय विखंडन की प्रायोगिक
खोज के लिए दिया गया परन्तु उसमें भी हान के अनेक :
वर्षो की सहकर्मी लिऐ मिटनर (1,65० ला) को
शामिल नहीं किया गया | यहाँ पर यह रखना आवश्यक
है कि मिटनर और फ्रिश (5८0 ने ही हान (पा)
के प्रयोगों की सर्वप्रथम उचित व्याख्या प्रस्तुत की
जिसके आधार पर ही आगे की प्रगति संभव हो सकी ।
राबर्ट विल्सन (२००७ 11500) और एर्नों पेन्जिआस
(&.. ?60टां85) को पुरस्कार राशि का आधा भाग दिया
गया था परन्तु जार्ज गैमो (6००४० 090५४) तथा
उनके विद्यार्थी ब्रह्माण्डीय माइक्रोवेव विकिरण के अस्तित्व
की सर्वप्रथम प्रागुक्ति को भी वे भुला दिए गए थे। ऐसे
अन्य उदाहरण भी दिए जा सकते हैं।
मानवजाति के कल्याण (७6611 0 प्राधादिएत)
का एरंभ में यह अर्थ लगाया गया कि प्रयुक्त भौतिकी
(भु 16 फएअ८७) के क्षेत्र को भी पुरस्कारों की परिषि
1 में रखा जा सकता है । 1909 में दिया गया पुरस्कार
बेतार के तार (१/ा61655 1616ट्राथु 0५) के लिए मारकोनी
को दिया गया था। 1908 का पुरस्कार जैसा पहले
लिखा जा चुका है रंगीन छायाचित्रों के बनाने की
विधि के आविष्कार के लिए लिपमैन को तथा 1912 का
पुरस्कार स्वीडिश इंजीनियर को प्रकाश संयंत्रों के लिए
स्वचालित प्रकाश व्यवस्था के विकास के लिए दिया
गया था। 1901 में ही नोबेल संस्थान ने यह निर्णय
लिया था कि जिन आविष्कारों का पेटेन्ट कराया गया
है, उनपर पुरस्कार नहीं दिया जाएगा, अतः थामस
एडिसन (1%907085 21507) जैसे आविष्कारक को इससे
वंचित रखा गया । यहाँ यह कहना समीचीन होगा कि
मारकोनी से पूर्व ही सर जगदीश चंद्र बसु (1.0.8056)
ने बेतार के तार की विधि से संकेत भेजने में सफलता
प्राप्त की थी और अपनी विधि का उन्होंने प्रदर्शन भी
किया था, परन्तु उन्हें मारकोनी और ब्राउन (8छा0०७0ा)
के साथ पुरस्कार में सहभागी नहीं बनाया गया था| यह
भी ध्यान देने योग्य है कि मारकोनी और ब्राउन दोनों ने
अपने द्वारा विकसित यंत्रों का पेटेन्ट कराया और उसके
आधार पर वृहत उद्योग स्थापित किए | हो सकता है कि
इन्हीं बातों को ध्यान में रखकर नोबेल संस्थान ने 1912
के बाद प्रौद्योगिक आविष्कारों के लिए पुरस्कार देना ही
बंद कर दिया । इसके परिणामस्वरूप एडिसन के साथ
ही अनेक महत्वपूर्ण आविष्कारक जैसे वान लिंडे (४७
[.लंत७) जिन्होंने रेफक्रीजरेटर मशीनों का विकास किया,
जेपेलिन (2७ फिए जिन्होंने गैस भरी हुई हवाई जहाजों
को विकिसत किया, आरविले और विलबर राइट (0५४1९
भाएं ए106 रिट्ठा) जिन्होंने सर्वप्रथम हवा से भारी
विज्ञान/अक्टूबर 2002/14
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