हृदय का कोना | Hriday Ka Kona

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Hriday Ka Kona by अनन्त प्रसाद विद्यार्थी - ANANT PRASAD VIDYARTHI

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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दर पर 1 ः [ | | । ) दर [ 1, 1 1 हृदय का कोना | क ज उन्होंने कदा--श्राज बहुत दूर टहलने चली गई थी, कया प्रेम ? _ ''जीहां' कह कर वह अपने कमरे में चली गई । पढ़ने में उसका जी न लगा । खाना भी कमरे में ही मँगा कर खा _ लिया श्र पलंग पर पड़ रही । अपनी विचार धारा में बहती हुई वह कितनी ही देर तक जगती रही इसका उसे ज्ञान न था । +*िन& शललडेनन [९ ... प्रेमलता के पिता. शिवाधार को किसी कायंवश पटने जाना पड़ा था। जब वे वहां से लौटे तभी से ज्वर से पीड़ित थे। एक ससाह पश्चात्‌ उनकी तबीयत श्राज कुछ ठीक थी । आराम कुर्सी पर बैठे हुए, वे सिगरेट पी रहे थे । सिगरेट का धुवां ऊपर की शोर उठ कर वक्र रेखाएँ बनाता इुद्मा शून्य में विलीन हो रहा था। एकान्त ने उन्हें दार्शनिक बना दिया था । धुयें की वक्र रेखा को वे कुछ क्षण तक देखते 'रहे। जीवन का कितना गहन सत्य धुयें की इस रेखा में निहित है! इसी . प्रकार मानव-जीवन भी है; कितने डुगम मार्गों - से होकर वह ऊपर की और उठने का प्रयत्न करता है; परन्ठ अन्त में उसे विलीन होना पड़ता है । सिंगरेट का अन्तिम कश खींच कर उन्होंने उसे '“ऐश-ट्र' में डाल दिया । मंद-गति से सिगरेट का अवशिष्ट भाग चीनी मिट्टी के उस पात्र में सुललग रहा था । शिवाधार सोचते रहे आधारहीन होकर सिगरेट का तअवशिष्ट भाग किस प्रकार अपनी ज्वाला को छिपाये हुए सुलग रहा था । कितने समय से वे भी तो श्रपने अन्तर की ज्वाला को छिपाये हुए इसी प्रकार जल रहे' हैं ।. उनके हृदय की . बेदना काला धुआआ : बनकर उनके:भविष्य के विशाल शून्य, में विलीन होती ..श्राई है। जीवन का. सुख कया है यह तो उन्होंने जाना ही नहीं । ही ए- ... «




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