रसतरंगिनी | Rasatarangini

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Rasatarangini by गोपालदत्त जोशी - Gopaldutt Joshi

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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|| उंे 1) बमेघासि देवि विदिताखिलकास्त्रसाराक (दु० स०, ४1११) भूमिका (१) “रसतरंगिणी' का रचयिता भारतीय साहित्यशास्त्र में एक परम्परा के भ्रनुसार इस ग्रन्थ के लेखक का नाम भानुदत्त स्वीकार किया गया है किन्तु भानुदत्त की अनेक कृतियों में यह नाम कई रूपों में विभिन्‍न प्रकार से प्रयुक्त हुभ्रा है । कुल मिलाकर इस नाम के जो रूप प्रयुक्त हुए हैं, वे इस प्रकार हैं--भानुदत्त, भानुदत्त मिश्र, भाचु भ्रौर भानु- मिश्र । इनमें 'भानुदत्त' श्रौर 'भानुदत्त मिश्र” का प्रयोग क्रमश: 'रसमंजरी' श्रौर “रसतरंगिणी' की पुष्पिकाओं में हुआ है । “भाव का प्रयोग इत दोनों प्रन के कुछ इलोकों में भानुदत्त ने स्वयं ही किया है ।* 'भानुमिश्र' इनके व्याख्या- ताथ्रों का दिया हुप्रा नाम है।* इन सभी रूपों में 'भानुदत्त' सोधा-सा व्यवहार विशेष संदर्भ के लिए श्रीद्दरिक्ृष्ण निबन्ध भवन, बनारस द्वारा प्रकाशित “रसमंजरी' के संवत्‌ २००८ के संस्करण श्रौर खेंमराज श्रीक्रष्णदास, बमग्बई द्वारा प्रकाशित “रसतरंगिणी” के सम्बत्‌ १६७४ के संस्करण का अ्रध्ययन किया जा सकता है । देखिए--+ भानुदत--इति मेशिलश्रोत्रियकुलतिल कमहा कविभानुदत्तविर चिता रसमक्री सम्पूरों ! भानुदत्त मिश्र-इति श्रीभानुदत्तमिश्रविरचितायां रसतरंगिण्यां प्रकीणुकं लामाष्ट- मस्तरंगः । भानु-- (झ) विद्वत्कुलमनोग गरसब्यासंगहेतने । एषा प्रकाश्यते श्रीमदुभालुनारसमंजरी 1| (रसमंजरी, २) (झा) भारत्या: शास्त्रकान्तारश्रान्ताया: शैत्यकारिणी । ' क्रियते भानुना भूरिरसा रसतरंगिणी ॥ (रसतरंगिणी, १1२) भावुमिश्न--(झ) 'इद कवि सहदयास्तिकशिरोमखणि: श्रीमान्‌ भानुंमिंश्र: समुचितमन्त रायशान्तये शिवात्मकं मंगलं वस्तु ***'* ।” (“रसमंजरी” की 'सुरभि” व्याख्या में पंडित बद्रीनाथ शर्मा, एष्ठ १) | (झा) “श्लोका्थे यद्द है कि जब तक सूयय॑ की कन्या काचघटीवत्‌ श्रनिवंचनीया '्दू मुत जलयुक्त कालिन्दी पथिवी पर है तब तक मैं जो भानुमिश्र उसकी यट्द




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