गुरुदेव का शिक्षणालय | Gurudev Ka Shikshnalai

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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(रद ) की बहू बनजाने से मेरा नैमच भी कुछ खटकता सा मालूम होता है गुर्देव- इसमें ग्वटकते को क्या चात है बेटी, तू श्री सन्त चर की चह बन जाय इसीव लिये तो तेरे सातापिता ने और भाई से काफी सेहनत की और डाफ्ति से बाहर हजारों रुपयों का खच्ये किया 1 उनकी इतनी कोशिश ओर इतना त्याग जब सफल हुआ हे तब उन्हें चड सवटकेगा क्यों ? पद्मा- क्या बत्ताऊ' गुरू गुरुदेव- नहीं चेठीं, चद्दां तुमसे कुछ बड़ीमी सूख होग्ही है । मां चाप में सगढ चप तक तेरा पालन पोषण किया, पढ़ाया लिखाया. तुझे जीवनभर सुखी और सम्पन्न बनाने के लिये हजारों पे खच किये, उनके इन अमीम उपकारों के छिये तेरे मन में कूतनता की कुड़ कभी माछम होती है । अगर उनने लड़के के लिये इतना खच किया होता तो आज उन्हें बढ़ कमाई तो खिलानता ही साथ ही तन से भी वह पूरी सेब। कर्ता । पर तेरे लिये तो त्याग हो त्याग उनके पल्डे पड़ा है, भर बदले मे सेवा का एक छोड़ा सा अश भी उन्हें नदी मिल्लरदा है । पद्मा- पर इसमें मेरा क्या कुलूर है गुरुदेव ! गुद्ददेव- जहा तक सामाजिक विधान का सम्बन्ध है: वहां तक नेगा कोई कपूर नहीं । पर लड़कों के लिखे मां बाप को कितना त्याग करना पड़ता है इस बात को लडकी भूल जाय, और मां बाप के बलिदान के दम पर जो कछ लड़की को मिला उसका अभिसान उपमें आजाय, और वह अभिमान मां बाप के सामने थी प्रगट होने लगे, इसकी जिम्मेदारी तो सामाजिक विधान पर नहीं डाली जासकती 1 मां बाप के प्रति कतध्न अविनीत या अहंकारी ननने का तो सामाजिक विधान नहीं है । पद्मा- पर ऐसा तो मेने कुछ नहीं किया गुसरेव, गुरूरव- घर में रोटी कोन बनाता है ? पद्मा- मां और भाभी, !




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