हिंदी जैनभक्ति काव्य और कवि | Hindi Jainbhakti Kavya Aur Kavi
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
17 MB
कुल पष्ठ :
464
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)[ ११. ]
डी प्रकाशन का विचार था . अतः प्रंथंस द्रव्य, सहाय की. स्वीकृति:
देने नाल सब्नन ने ८००३ से अधिक देने. की. ज निच्छा जाहिर हम
_ नको. तब पूज्यश्रो ने सण्दूर निवासी :सा० सेरामचन्द नेमचल्द को.
दा सूचित कर पूरे घरंय की सदांयता फे-ढिंए सो तैयार कर दिया,।
: घर इसारा सी छोष बेडता रहा और मय -काफो बड़ा होता
गया ! फिए भी-श्रोमेदूं की रचनाओं. का :यदद- एक ही . सांग है
और इसमें सुख्यत: अव्यात्मिक रचनाओं ही सत्र . किया; गया. .
.. है। श्रीमदू की जन तस्त्रज्नान और छंदादि इतर विषयक अल्य
_रचनाओं,का लगसग इतना ही संग्रद असी हमारे पास -और
_ पड़ां है ।...उन अम्रक़ाशित रचनाओं में श्रोमदू की. साहिस्यिक
' ,ग्रविभा की 'कांकी अधिकें रूप से सत्निहित है ।
हसारा बिचार .जीवनचरित्र के साथ श्रीमदू, को दिये हुए
' खास (राजा ओके स्वयं लिखित) रूकों की पूरी नकर्छे देनेका सो था
पर जीचनी -घहुत .ठम्ची हो जाने से.. उ्त विचार को. स्थमित
रखना पड़ा। श्रोसदूकी अध्यास्सिक: रचनाओं में योगिराज
ानंद्चनजी .की वबौवी पी पर बाठाववोध, बदत दी सहसखपूर्ण
. है। चसे प्रकाशित करनां.सो नितान्त आवश्यक है पर॑ स्वतंत्र
« 'पुरतक जितना बड़ा होने के कारण इस - संप्रहमें सस्मिछित नहीं
':. किया जा सका । इपेडा. विषय है कि उसका चिशेष . रूप से -
' “उपयोग करतेहर हमारे सित्र जयउुर के जौदरी श्रो मरावं चर
_ जी जरगड़ से आनंदघन मी. को. चौबोसों पर आाघुनिक ढंग का
_. “दविवेवन . खिला हैं, जो शीघ्र ढी प्रकाशित होगा ।
हमें खेद दै कि म्रथ में वहुतली अशुद्धियां, रद्द गयीं, पूज्य
भी मद्रमुनिजी (आजकल -सदजानन्दंजी)मददाराजने उनका शुद्धिपत्र
गन
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