हिंदी जैनभक्ति काव्य और कवि | Hindi Jainbhakti Kavya Aur Kavi

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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[ ११. ] डी प्रकाशन का विचार था . अतः प्रंथंस द्रव्य, सहाय की. स्वीकृति: देने नाल सब्नन ने ८००३ से अधिक देने. की. ज निच्छा जाहिर हम _ नको. तब पूज्यश्रो ने सण्दूर निवासी :सा० सेरामचन्द नेमचल्द को. दा सूचित कर पूरे घरंय की सदांयता फे-ढिंए सो तैयार कर दिया,। : घर इसारा सी छोष बेडता रहा और मय -काफो बड़ा होता गया ! फिए भी-श्रोमेदूं की रचनाओं. का :यदद- एक ही . सांग है और इसमें सुख्यत: अव्यात्मिक रचनाओं ही सत्र . किया; गया. . .. है। श्रीमदू की जन तस्त्रज्नान और छंदादि इतर विषयक अल्य _रचनाओं,का लगसग इतना ही संग्रद असी हमारे पास -और _ पड़ां है ।...उन अम्रक़ाशित रचनाओं में श्रोमदू की. साहिस्यिक ' ,ग्रविभा की 'कांकी अधिकें रूप से सत्निहित है । हसारा बिचार .जीवनचरित्र के साथ श्रीमदू, को दिये हुए ' खास (राजा ओके स्वयं लिखित) रूकों की पूरी नकर्छे देनेका सो था पर जीचनी -घहुत .ठम्ची हो जाने से.. उ्त विचार को. स्थमित रखना पड़ा। श्रोसदूकी अध्यास्सिक: रचनाओं में योगिराज ानंद्चनजी .की वबौवी पी पर बाठाववोध, बदत दी सहसखपूर्ण . है। चसे प्रकाशित करनां.सो नितान्त आवश्यक है पर॑ स्वतंत्र « 'पुरतक जितना बड़ा होने के कारण इस - संप्रहमें सस्मिछित नहीं ':. किया जा सका । इपेडा. विषय है कि उसका चिशेष . रूप से - ' “उपयोग करतेहर हमारे सित्र जयउुर के जौदरी श्रो मरावं चर _ जी जरगड़ से आनंदघन मी. को. चौबोसों पर आाघुनिक ढंग का _. “दविवेवन . खिला हैं, जो शीघ्र ढी प्रकाशित होगा । हमें खेद दै कि म्रथ में वहुतली अशुद्धियां, रद्द गयीं, पूज्य भी मद्रमुनिजी (आजकल -सदजानन्दंजी)मददाराजने उनका शुद्धिपत्र गन




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