रविन्द्र साहित्य | Ravindra Sahitya
श्रेणी : साहित्य / Literature
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
11 MB
कुल पष्ठ :
244
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)१७७
उस समय कुजका हृदय करुणा और सहानुभूतिके भावसे भरा हुआ था ।
'चाचीको धीरज देनेके लिए भोजनके «उपरान्त वद्द एकाएक जोशमें आकर कट
बैठा--चाची, तुमने उस दिन अपनी बहिनकी लड़कीकी व्रात कही थी, उसे
मुझे मी तो एक दिन दिखलाओ
बात तो कद्द डाली, लेकिन पीछेसे कुजको बड़ा भय मालम हुआ |
सीरीने हँसकर कहदा--अब ब्याहकी ओर मन चला है कया !
कुंज जल्दीसे बोल उठा--मैं अपने लिये नहीं कहता चाची, मैंने विहारीको
राजी किया है। चस, अब तुम कन्याको देखनेके लिए. दिन ठीक कर दो ।
गौरीने कद्टा--अह्दा, उसके ऐसे भाग्य कहाँ ! क्या उसे बिद्दारी सरीखा वर
नसीव हो सकता दै ?
चाचीके कमरेसे बाहर निकलते ही दर्वाजेपर मा और बेटेकी भैंट हो गई ।
लक्ष्मीने पूछा--क्यों कुज, अभी तुम लोगोंकी कया सढाद्द दो रही थी !
कुजने कहा--सलाइ तो कुछ मी नहीं, पान लेने आया था ।
लक्ष्मी--तेरे पान तो मेरे कमरेमें लगे हुए रक्खे हैं ।
कुज कुछ जवाब न देकर चुपचाप चला गया । लक्ष्मीने गौरीके कमरेमें जाकर
वाहरददीसे झाँका । रोनेसे फूली हुई गोरीकी ऑखें देखकर छ्ष्मीने अनेक बातोंकी
कल्पना कर ली । वद्द चट कह्द उठी--क्यों जी, जान पड़ता है ठुम लड़केसे कुछ
लगा बुशता रद्टी थीं । लक्ष्मी इतना कदकर उत्तरकी प्रतीक्षा किये बिना ही वहँसे
चली राई ।
स्द र्स्ड मे उद
दूसरा परिच्छेद
ह्ट््ह्की देखनेकी वात कुज तो भूल गया, लेकिन गौरी नहीं भूली । उसने
लड़कीके प्रतिपालक अपनी वहिनके जेठको एक चिट्ठी लिखकर भिज दी
और उसमें छड़कीको देखनेके लिए आनेका दिन भी लिख दिया । कुंजका निवास
कलकत्तेमें था और लड़की मी वहीं बड़े वाजारमें थी ।
लड़कीको देखने जानेका दिन भी ठीक हो गया, यदद सुनकर कुजने कह्दा--
की ठुमने इतनी जल्दी क्यों की * मैंने तो अभी विह्दारीसे इस वारेमें कुछ भी
नहीं कहा )
गौरीने कद्दा--यह क्या कुज ” तूने ही तो कहा था कि विद्दारी राजी है । अब
अगर तुम लोग देखने न जाओगे, तो वे लोग क्या कहेंगे ?
कुजने विहारीको बुलाकर उससे सब हाल कद्दा । कद्दा--चलो तो; यदि लड़की
परुद् न होगी, तो जवर्दस्ती तो कोई तुम्दारे गले मढ दी न देगा ।
आाँ. कि, २
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