प्रिंस बिस्मार्क | Prince Bismark

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Prince Bismark by वेदालंकार इंद्रा

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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दूसरा परिच्छेद कुछ तथा जन्म विस्माकंवंश जर्मनी में बहुत पुराना था । जमंनीके वर्तमान शासक होहिन: जोलन जब अभी राज्य का सपना भी न देख रहे थे, यह वेश उसी समय से अपनी माठृभूमि के युद्धों में भाग लेता था । यह वंश जबसे लोगों में प्रसिद्ध हुआ, तबसे योद्धा ही रहा । विस्माकें वंश के मायः सभी बड़े २ आदमी युद्ध में मरे, अथवा अपना जीवन उन्होंने तलवार की सेवा में बिताया । अपनी जुमीन्दारी से पेट भरना और लड़ाई कड़ना, बस ये दो ही मुख्य कार्य 'थे, जिसे बिस्माक॑ ठोग किया करते थे । चरित' नायक प्रिंसबिस्माक॑ का पढ़दादा महान्‌ फूडरिक के लड़ाकू सर्दारों में से था । कहते हैं कि वह बड़ा प्रबल लड़ाकू, बड़ा प्रबल शिकारी, और साथी उन्मत्त शराबी था । यह आशइचय की बात है, कि प्रिंस बिस्मार्क की सूरत शक्ल अपने पूर्व पुरुषाओं में -से सब से ज्यादा अपने पड़दादा से ही मिलती थी | प्रिंसबिस्मा्क॑ माय? कहा करता था. कि जब में अपने पड़दादा की तस्वीर के सामने खड़ा होता हूं तो मुझे वंह अपना फोट़ू दिखता है । प्रिंसबिस्मार्क के पिता का पूरा चाम कार्ट विल्हस्म फेडिकिफोन.-बिस्मार्क था । अपने कुछ क्रमानुसार यह भी पहले सेना में ही भर्ती हुआ । किन्ठ बहुत शीघ्र ही सेना की रोज की तुरही से इसके कान थक गये । लड़ाई का काम छोड़कर उसने अपनी जमीन्दारी पर ही संतोष किया । अपने पूर्व पुरुषाओं से बिस्मार्क के पिता ने शोनहोजन आमकी जमीन्दारी प्राप्तकी थी । एक सन्तोषी और गहरी दृष्टि रखने वाठे जर्मन वासी की तरह, वह शोनहोजन में ही दिन बिताने लगा । उसका सुख्म जीवन शिकार खेढने, शराब पीने और अपनी खेती की देखभाल करने में ही गुजरने ढगा । अपनी जुर्मीदारी का आनन्द छूटते हुए ही उसे अपने जीवन की संगिनी भिली । फोठिन मोन्किन नामकी कन्या, जिससे बिस्मार्क ने शादी को एक बड़े




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