हिंदी गद्य की रूप रेखा | Hindi Gadhya Ki Roop Rekha
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
6 MB
कुल पष्ठ :
168
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)भ्च्ल्
.निसांण-काल नह
पुस्तकों के द्वारा गद्य का कोई विकास नहीं हुआ । हाँ, इतना
तो अवश्य छुआ कि इन गद्य-पुस्तकों ने आगे के लिए झच्छी-
खासी भूमि तैयार कर दी और लेखकों के लिए हिंदो-गद्य का
द्वार खोल दिया, यह हमें निःसंकोच रूप से स्वीकार श्वश्य
करना पढ़ेगा । इस काल के अन्तिम भाग में जाकर खड़ी बोली
की ओर लोगों का ध्यान चिशेष रूप से श्याकर्षित हुआ और
उसमें अच्छी-झच्छी रचनाएँ होने लगीं । ऐसे लेखकों में मुन्शी
सदायुखलाल नियाज् (सब १७४६-१८२४) और इ'शाश्मल्ला-
खाँ के नास चिरस्मरणीय हैं । उनसे '्ागे चलकर अंग्रेजों
के शासन-काल में लल्बलाल श्रौर सदलमिश्र हुए,
न्होंने सरकार की श्रोर से हिन्दी के लिए काम किया । इन
चारों लेखकों का दिंदी-गद्य में एक महत्त्वपूर्ण :स्थान है, क्योंकि
इन्हीं से हिन्दी-गद्य का एक नूतन युग श्ारस्भ होता है ।
इसलिए मुन्शी सदासुखलाल 'नियाज' और इ'शाझल्लाखाँ
की गद्य-सेवाओं का उल्लेख इस स्थान पर न कर इन शेष
दो लेखकों के साथ ही कर दिया गया है, यद्यपि वे इसी
काल के हैं ।
: ३:
हिंदी-गद्य का निर्भाण-काल
( सच ८००-१८६३ ई०
(या) फ्रोट विलियम कालेज के अन्दर और बाहर !
उत्तर-माध्यमिक काल के अन्तिम भाग से लेकर आधुनिक
काल के आारम्भ तक खड़ी बोली की आर लेखकों का ध्यान विशेष
रूप से आकर्षित हुआ । लल्लूलाल 'और सदलमिश्र के पूर्वे-
माध्यमिक काल के अन्तिम भाग के दो गद्य-लेखक 'साहित्य-
सत्र में प्रवेश कर चुके थे । चात वारतव में यह है कि लल्लू-
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