समालोचना तत्व | Samalochna Tatve
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लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
6 MB
कुल पष्ठ :
198
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
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बँघ जाती है, जिसके द्वारा एक विपय की धारणा अन्य विपय
को घारणा को उद्दीप्त कर देती है । जिन सच स्नायविक घिधानों
के कारण एक विपय से दूसरे विपय का पुनरुदूय होता है;
उनमें भी संदति संघठित होती है । संहति के द्वारा ही इमारे
इ्पसिक्षता-लब्ध ज्ञान परस्पर ससम्मिद्ित होते हैं । हम एक घकार
से चिंता-संदति के दास हैं ।
प्रत्यक्ष पतिच्छाया इन्द्रिय-सल्चिकट घस्तु से उत्पन्न संस्कार
है। परोक्त प्रतिच्छाया स्सति-शक्ति की सददायता से प्रत्यक्ष का
पुनरुदय है । ध्तएव प्रत्यक्त प्रतिन्छायें जितनी स्पष्ट होती हैं, परोक्त
प्रतिच्दायें उत्तनी नहीं होती । दोनों में कुछ भिन्नता पाई जाती
है। झाधुनिक मनोविज्ञान का सिद्धान्त यह है कि पूर्वजात
्भिज्ञाताश्यों के द्वारा दम चस्तुथ्यों की उपलब्धि के लिए तैयार
हुए हैं. उन्हीं को हम प्रत्यक्त कर सकते हैं, ध्ौर उन्हीं की
अ्रतिच्छायें मन में रख सकते हैं ।
शाव-संदतियाँ दो नियमों के ध्रधीन हैं-साद्रश्य ध्यौर
सामीप्य । किसी घिष्य के स्मरण के समय, सम्पकित घट-
नाझ्ों को सहायता से जो मन में उदित होती हैं. वद्द हैं सादश्य-
सूलक भाष-संदति । एक दो स्थान या काल में जिन घटनाश्ों
का उल्भव होता है, उनसे सामीप्य-सूलक भाव-संदति का सम्पर्क
है। कार्य-कारण-सम्बन्ध सामयिक सामीप्य का ट्रष्टान्त है ।
सामीप्य के नियमों से उत्पन्न मानसिक क्रियाशझों की उतनी
सफलता नहीं होती, जितनी साद्श्य से उत्पन्न मानसिक
क्रियाइों को ।
_.. श्रवणेन्द्रिय से घास ज्ञान की श्पेक्षा दर्शनेन्द्रिय से घाप्त
ज्ञान द्ृढ़ृतर होता है। शाब्दिक सट्वति-शक्ति की . सद्दायता से हम
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