राजरूपक | Rajaroopak

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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राजदूताना का इतिहास जैसा डिंगल भापा में वर्णित है, वैसा झ्न्य किसी भाषा में उपलब्ध नददीं दै । कारण यह कि डिंगल भाषा राजस्थानी भाषा है शर यदद सर्व-सम्मत तथा युक्ति-युक्त है कि जैपा वर्णन प्रचलित देश- भाषा में दाता है वैसा झन्य भाष। में नद्दीं द्वे सकता । जैन धर्म के घाचार्यो से जैन धर्म प्रचार के लिये जितने श्रथ लिखे वे सब माघ देश के सबधघ से सायधी भाषा में लिखे यर । क्योकि शादि जैनाचाय का निवास सगघ में था 1 गुजरात के निवासी कवियों ने युजराती माषा में लिखे। देहली के बादशाह प्रायः ईरान (पारस) देश से द्राए थे । इसलिये पारस देश के संबंध से वादशाहों के समय में जो अथ लिखे गए, वे सब प्रायः पारसी भाषा में हैं । चंगाल के निवासी कवियों ने जो अंथ लिखे वे वंगाली भाषा में हैं । मद्दाराष्ट् देश के कवियों ने जितने ग्रंथ लिखे वे सब मराठी भाषा सें हैं। पंजाब के निवासी कवियों ने पंजाबी भाषा में लिखे । प्रज-मडल के निवासी कवियों से ब्रज-भापषा में श्रेथों को रचना की | यह ठीक है कि यथार्थ रइस्य झपनी देश-भाषा में जैता रहता है बैसा श्रत्य भाषा में नद्दीं रहता घर वद्दी डदयंगम देता है । शिंगल भाषा राजस्थानी माषा है इसी से राजस्थान के कवियों ने पनी राजस्थानी साषा में कविता निर्माण की दै । डिंगल भाषा छोजस्विनी घोर वीररस की पूर्ण पोषक है श्रौर राजस्थान वीर पुरुषों का कर है इसलिये डिंगल भाषा अधिकतर वीर-रसमय देखने में शाती हैं। इससे यद्द नद्दीं समकना चाहिए कि डिंगल माषा क्वल वीर-रसमय दी है। इसमें शात, अगार, करुण झादि समस्त रसॉबाली कविता उपलब्ध है | शातरत के लिये “दरिरस” आदि अय प्रसिद्ध हैं । शंगार-रस के 'सघु- मालती, ढोला मारवण रा दूदा रतना दमीर री वात, पन्ना वीरमदे री वात, दोन्ना सारवणु री चात” शादि झनेक अथ विद्यसान हैं । कयणुरस से भरे “करण वतीसी” झादि अनेक अंय हैं। अद्भुत रसवाली कविता “कायर वावनी' श्रादि अ्रंथ देखने में थ्ाते हैं। दवास्यरस के अंथ 'विदुर बावनी” श्ादि सिसते हैं. लो अपनी श्रपनी कोटि से ्प्रतिम है ।




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