मनोज मंजरी | Manoj Manjari
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
9 MB
कुल पष्ठ :
320
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
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ऊकांह भरो मानो रूप सागर को '.ठाढ़ी धाइ
लेत है ॥- 98७ 1॥
नमन की उपमां आो आनन को चाहै.
तंऊं आन न मिलेगी चतुरानन बिचारे की ।
कुसस कमान के कमान को गुमान गयो करि
अनुमान भौंह रुप श्रति प्यारि को ॥ गिरंघर-
दास दोऊ देखि नेन वारिलात बारिज्ञात बो-
रिज्ञात सान सर वार को । राधिका को रूप
देखि रति को लजात रूप जात रूप जातरूप
जातसरूंप वार को ॥ ३८ ॥
गोरी के इृघोरी शिव कबि मेहँदी के बिंदु
इन्द तो को गण नाके आगे लगे फौको डे ।
गुठा.अनप छाप मानो ससि आयो आप कर
कंज के सिलाप पात तजि हौको है ॥ आगे और
आंगुरो 'अँगूठी नोलमनि जुत बेठो मनो चाय
भरो चिठुआ अलो को है ।.. दबि के. छला सों |.
कोमलाई सों. ललाई.दौरि. जौतत , चुनी को..
चँग- छोर छिसुनी को है ॥- ८ .॥ : :
वि
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किसे चैतडैए सदस सलाइ के सलाइ सों
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