धर्मरत्न प्रकरण भाग - ३ | Dharmratna Prakaran Part-iii
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
8 MB
कुल पष्ठ :
186
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)चुवेलिकों' पुष्यसित्रं की कंथा ६
व
उनके नाम ये हैं:-- घृतपुष्यमित्र, चरंपुष्यमित्र और दुबंलिका-
पुष्यमित्र। :
उनमें घूत -पुष्यमित्र की 'ऐसी चमत्कारिक. लडिघ थी किन
दव्य से . घी. लाना श्त्र से उज्ेयिनी में. से; काल से ::ज्येष्ठ
आंपीड में, भाव से संसीप ही प्रसव करने. वाली दरिद्र स्त्री का
'दियो हुआ, गंच्ड को 'आवइयकता हो “उतना: न के.
न जन न भ
ढ
चस्त्र-पुष्यमित्र की यह रूब्घि थी कि-द्रव्य से चर लाना;
झषे त्र से मथुरा नगरी में,से लाना, काल से शिशिर ऋतु: में. और
सा से दंरिद्र विंधवां के हाथें से, सांरें गच्छे :को : पूर्ण हो उतने
प्रिमाण का |
दु्बेलिका--पुष्यमिंत्र की यह लि थीं 'कि-वे-नव पूर्व पंढ़कर
इनको सेव, पसावतंन. करते थे, जिससे वे. अतिशय दुबल हो
.गये थे. उनके (दुवेलिका-पुष्यमितर के) दपुर नगर में ' दशवल
(युद्ध) के सक्त चहुत से .सस्वन्धी थे । वे कौतुक से गुरु _ के ' पास
आ कहने लंगे-. का
70 रे *.+ था उप प्नमाामन पा. . उमा. जय आग
क्ः कि: मन 2: पर:
आपमें ध्यान नहीं, दसारे भिक्ु सदेव ध्यान में तत्पर :रद्दते
हैं ।.तब- गुरु ले कि-श्यान:तो हमारे दही. सें अति प्रधान है ।
. जिससे यह तुम्हारा संस्वन्धीं ध्यान ही से टुबल हो गयां है । तब
वे बोले कि-यह घर में था तब स्निग्थ आहांर..करता था? उसीसे
. चलवान था । किन्तु अब उस चह नंदीं मिलने से दुबेल हो गयी
“है । तब. रुरु वो जे कि-यद तो यहां:भी .. कभी: . घी रहित: खाता
द्दी नहीं । पं प्र लि
वे बोले किं-इसंक्रा तुम्हें: किसेंसे श्वबर मिलती है? गुरु ने
केहा-कि-इसं. घृतेंपुष्य से-तंथांपिं'उन्होंने यहूँ वात नहीं मानी |
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