धर्मरत्न प्रकरण भाग - ३ | Dharmratna Prakaran Part-iii

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Dharmratna Prakaran Part-iii by अज्ञात - Unknown

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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चुवेलिकों' पुष्यसित्रं की कंथा ६ व उनके नाम ये हैं:-- घृतपुष्यमित्र, चरंपुष्यमित्र और दुबंलिका- पुष्यमित्र। : उनमें घूत -पुष्यमित्र की 'ऐसी चमत्कारिक. लडिघ थी किन दव्य से . घी. लाना श्त्र से उज्ेयिनी में. से; काल से ::ज्येष्ठ आंपीड में, भाव से संसीप ही प्रसव करने. वाली दरिद्र स्त्री का 'दियो हुआ, गंच्ड को 'आवइयकता हो “उतना: न के. न जन न भ ढ चस्त्र-पुष्यमित्र की यह रूब्घि थी कि-द्रव्य से चर लाना; झषे त्र से मथुरा नगरी में,से लाना, काल से शिशिर ऋतु: में. और सा से दंरिद्र विंधवां के हाथें से, सांरें गच्छे :को : पूर्ण हो उतने प्रिमाण का | दु्बेलिका--पुष्यमिंत्र की यह लि थीं 'कि-वे-नव पूर्व पंढ़कर इनको सेव, पसावतंन. करते थे, जिससे वे. अतिशय दुबल हो .गये थे. उनके (दुवेलिका-पुष्यमितर के) दपुर नगर में ' दशवल (युद्ध) के सक्त चहुत से .सस्वन्धी थे । वे कौतुक से गुरु _ के ' पास आ कहने लंगे-. का 70 रे *.+ था उप प्नमाामन पा. . उमा. जय आग क्ः कि: मन 2: पर: आपमें ध्यान नहीं, दसारे भिक्ु सदेव ध्यान में तत्पर :रद्दते हैं ।.तब- गुरु ले कि-श्यान:तो हमारे दही. सें अति प्रधान है । . जिससे यह तुम्हारा संस्वन्धीं ध्यान ही से टुबल हो गयां है । तब वे बोले कि-यह घर में था तब स्निग्थ आहांर..करता था? उसीसे . चलवान था । किन्तु अब उस चह नंदीं मिलने से दुबेल हो गयी “है । तब. रुरु वो जे कि-यद तो यहां:भी .. कभी: . घी रहित: खाता द्दी नहीं । पं प्र लि वे बोले किं-इसंक्रा तुम्हें: किसेंसे श्वबर मिलती है? गुरु ने केहा-कि-इसं. घृतेंपुष्य से-तंथांपिं'उन्होंने यहूँ वात नहीं मानी |




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