तुलसीदास चिन्तन और कला | Tulshi Das Chintan Aur Kala

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Tulshi Das Chintan Aur Kala by डॉ. इन्द्रनाथ मदान - Dr. Indranath Madan

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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चुदपौगाप एक सबझरा रच लवसीगास मी का पासद पौर घाइम्बर से जड़ी चिउ थी ! के स्वय सरल हुदप के स्यक्ति थे ।”सलिए जहा बह थे इस प्रार वी पनसंक्र बात देसते थे बहीं उसका को प्रवट शा जता था धौर बसौ-जमी बुरी सरह उन्हें फटकार देत थे ।' इसके साय ही मे 'सरनकाम्य' बरगा ही सही जासते थे । उसके समय से धर मे इस्डार से रत्ता की चसऊ होती थी । झनेक रवि राजाभयर ये ने थे परसतु तुबसीशास जी वो यह विधेषता थी शि थे इस महेसी 'प्रदसा भौर 'राजाधय' में कोगा दूर थे । दिखा पपाज की प्रशसा करा जे सरस्वती कर घयमात समसते पे दौर मी है, डिसे शमाज-निरमरि करना हो पौर समूचे राण मो 'औौषत देना हो था ब्उतिति इन दाटीनदोटी दाता पे छिस प्रभार उससदर मदता था 1 लुगपी के जीवन के सम्दरध मजा उनवी घस्तरात्ता शी प्रकति के वियय मि-लता जानने के साथ ही एक बात पौर सी जानते मोस्प है । बह यह फि सुलसौदाम जी थे समय ियनापडुरी कायी सरहत बा गढ़ थी सीलिए जब शुतमीदास जी मे प्रपती माय भरी मादा में जिस मासा कहां जाता था लिखी ता पंडितों के कोय गए रिफता से रहा । सुकते हैं तुलसीदास जी को उस लाया जे घने पष्ट थी दिए थे पौर रापायग की हर्ललिसिव गति को सट्ध भी कर दिया था । सेदित सुपमीशन जौ इससे विवनित सहीं हुए प । हात भी गयों ? सिडासस था दि पुर वे बचतों का चुपचाप सह सैगा चाहिए उसी पडार जिले अर लि पहाह अदा को सह सेने है बूस्द घपात साहि पिरि केसे शत मे बचत शत सेट जैसे । कलप्य की बूकार पर उनइ हुएय मे मापते मे ही घपने पजुपष स्यपत दिए घएपि बे चाएने हो सहहुत मे भी सिस शकते थे सिज सब मे जता हे हुइय ठार से बस पाने पिते पुरे हनन सगे एप इमर शम्थ, इस इपर दे सच! सवपी सलाद वाला रगशग जज मेयप कलाव नें पहल जम रस शाप 1 सिथि बलि दिला साथ बदन ये




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