श्री समयसार (हिंदी पद्यानुवाद ) | Shree Samayasar (hindi Padyanuwad)

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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[ १४ ] जियमें स्पयं नहिं बद्ध, अरु नहिं कमभावों परिणमे । तो बोदि पुद्वल द्रव्य भी, परिणमनद्दीन बने अरे १ १६।। जो बगणा कार्माणकी, नहिं कमंभादों परिणमे । संसार का हि भमाव अथवा सांख्यमत निश्चित हुवे 11१ १७॥। जो कम भावों परिणमावे जीव पुदूगल द्रव्यको । क्यों जीव उसको परिणमावे, स्वयं नहिं परिणमत जो ।1११८। स्वयमेव पुदुगलद्रव्य अरु, जो कम भावों परिणमे । जिब परिणमावे कर्मको, कमत्वमें मिथ्या बने 11१ १९॥। पुद्उल द्रव जो कम परिणत, नियमसे कमंहि बने । ज्ञानावरण इत्यादि परिणत बोहि तुम जानो उसे 11१ ९०।॥| नदिं बद्धक्म, स्वयं नहीं जो क्रोधभावों परिणमे । तो जीव यह तुझ मतबिषें , परिणमनहीन बने अरे ॥१२१॥। क्रोधादि भावों जो स्वय नदिं जीव आप हि परिणमे । समारका हि मभाव अथवा सांस्यमत निश्चित हुवे 11१ २२।॥। जो क्रोध पुदूगलकर्म जिवको, परिणमावे क्रोधमें । क्यों क्रोध उसको परिणमावे जो स्वयं नहिं परिणमे ।।१२३।॥। मथवा स्वयं जिव क्रोधभावों परिणसे तुझ बुद्धिसे । तो क्रोध जिवको परिणमावे क्रोघमें मिध्या बने 11 १२४।। क्रोघोपयोगी क्रोध जिव, मानोपयोगी मान है | मायोपयुत माया अबरु लोभोपयुत लोभदि बने ॥१९२४॥।




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