श्री समयसार (हिंदी पद्यानुवाद ) | Shree Samayasar (hindi Padyanuwad)
श्रेणी : जैन धर्म / Jain Dharm
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
1 MB
कुल पष्ठ :
52
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)[ १४ ]
जियमें स्पयं नहिं बद्ध, अरु नहिं कमभावों परिणमे ।
तो बोदि पुद्वल द्रव्य भी, परिणमनद्दीन बने अरे १ १६।।
जो बगणा कार्माणकी, नहिं कमंभादों परिणमे ।
संसार का हि भमाव अथवा सांख्यमत निश्चित हुवे 11१ १७॥।
जो कम भावों परिणमावे जीव पुदूगल द्रव्यको ।
क्यों जीव उसको परिणमावे, स्वयं नहिं परिणमत जो ।1११८।
स्वयमेव पुदुगलद्रव्य अरु, जो कम भावों परिणमे ।
जिब परिणमावे कर्मको, कमत्वमें मिथ्या बने 11१ १९॥।
पुद्उल द्रव जो कम परिणत, नियमसे कमंहि बने ।
ज्ञानावरण इत्यादि परिणत बोहि तुम जानो उसे 11१ ९०।॥|
नदिं बद्धक्म, स्वयं नहीं जो क्रोधभावों परिणमे ।
तो जीव यह तुझ मतबिषें , परिणमनहीन बने अरे ॥१२१॥।
क्रोधादि भावों जो स्वय नदिं जीव आप हि परिणमे ।
समारका हि मभाव अथवा सांस्यमत निश्चित हुवे 11१ २२।॥।
जो क्रोध पुदूगलकर्म जिवको, परिणमावे क्रोधमें ।
क्यों क्रोध उसको परिणमावे जो स्वयं नहिं परिणमे ।।१२३।॥।
मथवा स्वयं जिव क्रोधभावों परिणसे तुझ बुद्धिसे ।
तो क्रोध जिवको परिणमावे क्रोघमें मिध्या बने 11 १२४।।
क्रोघोपयोगी क्रोध जिव, मानोपयोगी मान है |
मायोपयुत माया अबरु लोभोपयुत लोभदि बने ॥१९२४॥।
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