जैनतत्त्व कलिका विकास | Jain Tattva Kalika Vikash
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
27 MB
कुल पष्ठ :
338
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)(२ )
दक वा स्थविरपद्विभूषित जेनमुनि स्वामी गणपतराय जी महाराज के
दर्शनों का सौभाग्य प्राप्त हुआ । उस समय श्री उपाध्याय जी महाराज ने रापको
निजलिखित जनतत््वकलिकाबिकास प्रेथ का पूर्वाद दिखलाया । उसको
देखकर वा खुनकर श्रापने स्वकीय भाव प्रकट किये कि यह प्रंथ जैन झ्ोर
जनतर जनता में जन धरम के प्रचार के लिये अत्युत्तम है । साथ ही शापने
इसके मुद्रणादिव्यय के लिये अपनी उदारता दिखलाई जिसके लिए समस्त
श्री संघ आपका अआभारी है । प्रत्येक जेन के लिए आपकी उदारता अनुकर-
णीय है । यद सब श्रापकी योग्यता का ही श्रादश है । आज कल श्राप
करनाल में ्रफ़्लर माल लगे हुए हैं ।
आपके सुपुत्र लाला चन्द्रबल बी. पए. एल. एल. बी पास करके भस्वा-
ले में वकालत कर रहे हैं । जिस प्रकार वट ब्रक्त फलता श्रोर फूलता है ठीक
उसी प्रकार झापका खानदान श्रोर झापका परिवार फल फूल रहा है।
यह सब धर्म का ही माहात्म्य हे । अतण्व हमारी सबे जैनधम प्रेमियों से नगर
श्रोर सविनय प्राथना हैं कि श्राप श्रीमान् राय साहिय का शअनुकरण कर
सांसारिक व धार्मिक उन्नित करके निवाण पद के झधिकारी बनें।
भवदीय सदूयुणानुरागी
श्री जैन संघ,
लुधियाना ( पंजाब )
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