जैनतत्त्व कलिका विकास | Jain Tattva Kalika Vikash

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Jain Tattva Kalika Vikash by उपाध्याय जैनमुनि आत्माराम - Upadhyay Jainmuni Aatmaram

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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(२ ) दक वा स्थविरपद्विभूषित जेनमुनि स्वामी गणपतराय जी महाराज के दर्शनों का सौभाग्य प्राप्त हुआ । उस समय श्री उपाध्याय जी महाराज ने रापको निजलिखित जनतत््वकलिकाबिकास प्रेथ का पूर्वाद दिखलाया । उसको देखकर वा खुनकर श्रापने स्वकीय भाव प्रकट किये कि यह प्रंथ जैन झ्ोर जनतर जनता में जन धरम के प्रचार के लिये अत्युत्तम है । साथ ही शापने इसके मुद्रणादिव्यय के लिये अपनी उदारता दिखलाई जिसके लिए समस्त श्री संघ आपका अआभारी है । प्रत्येक जेन के लिए आपकी उदारता अनुकर- णीय है । यद सब श्रापकी योग्यता का ही श्रादश है । आज कल श्राप करनाल में ्रफ़्लर माल लगे हुए हैं । आपके सुपुत्र लाला चन्द्रबल बी. पए. एल. एल. बी पास करके भस्वा- ले में वकालत कर रहे हैं । जिस प्रकार वट ब्रक्त फलता श्रोर फूलता है ठीक उसी प्रकार झापका खानदान श्रोर झापका परिवार फल फूल रहा है। यह सब धर्म का ही माहात्म्य हे । अतण्व हमारी सबे जैनधम प्रेमियों से नगर श्रोर सविनय प्राथना हैं कि श्राप श्रीमान्‌ राय साहिय का शअनुकरण कर सांसारिक व धार्मिक उन्नित करके निवाण पद के झधिकारी बनें। भवदीय सदूयुणानुरागी श्री जैन संघ, लुधियाना ( पंजाब )




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