श्री भागवत दर्शन (खण्ड ५१ } | Shri Bhagwat Darshan [ Khand - 51 ]

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Shri Bhagwat Darshan [ Khand - 51 ] by श्री प्रभुदत्त ब्रह्मचारी - Shri Prabhudutt Brahmachari

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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बसुदेवजी श्लौर मुनियों का प्रश्नोत्तर श्३ द्वारा मोक्ष मार्ग के प्रतियन्धक फर्मो का परिहार किया जा सके । श्र्थात वे कर्म वन्धन के कारण न होकर मोक्त कराने वाले हों ।”” भगयान्‌ के पूज्य पिता वसुदेवजा के मुख से ऐसा प्रश्न सुन कर सभी सषि मुनि दसने लगे । वे परस्पर में कहने लगे-देखो, कैसे श्ाश्चय की बात हैं, जिनके घर में विश्व को मुक्ति प्रदान चारने वाले साक्षातू सचिदानन्दयन श्राददरि पिद्यमान है, वे 'झपनी मुक्ति के लिय इमसे प्रश्न फर रदे हूं ।” ऋषियों को शाश्चर्य चकित देखकर उन सयस देवर्षि भगवान्‌ नारदजी योले--'मर्दपियों ! '्ाप इस प्रश्न को. सुनकर इतना श्ाशर्य प्रकट क्यों कर रददे हैं । इसमें श्माश्चर्य की कौन-सी बात दे 1 ऋषियों ने कहा--“शुनिवर ! इससे '्धिक शाश्चय कया होगा कि जिसका देय पुन नित्य प्रति सहख्रो को श्रौपधि देकर श्च्छा करता हें, वही अपनी चिकित्सा के लिये किसी श्न्य साधारण बैद्य के समीप जाय । मुक्तिदाता भगवान्‌ के रायि दिन साथ रहने पर भी चसुदेवजी दम स॑ मुक्ति देने वाले कर्मी का प्रथ कर रहे हैं ।” नारदजी ने कद्दा--“सुनियो ! रिसी के घर में अस्त रखा है, उसे चहद पीये नहीं तो श्सत केसे अमर कर देगा । मुक्ति ढाता भगवान्‌ इनके घर मे हैं, किन्तु ये तो उन्हें अपना पुन माने थेठे हें । ये स्तय उलटे इन्हें सिसाते हैं. । इन्हें पोष्य समझते हैं । उनसे ये केसे परम कर सकते दूं ।”” इस पर मुनियों ने कहददा-'“अच्छा, ये भले दी पुन माने, फिन्दु भगवान्‌ तो स्वज्ञ हैं, घट घट की जानने वाले हैं, वे ही इनके शन्तःफरण में प्रवेश करके इनके इस अश्न का उत्तर क्यो नं दे देते 7”? उस पर नारदजी ने कद्दा--“भगवान्‌ जो इनवे झन्ताकरण




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