ब्रज का इतिहास खण्ड १ | Braj Ka Itihas Khand-i
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
6 MB
कुल पष्ठ :
298
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)ही
४् प प्र का इतिदास
शू्रसेन या मथुरा जनंपद्-वर्तमान मथुरा तथा उसके धाप्त-पास
का प्रदेश, जिसे जन कद्दा जाता है; प्राचीन छाल में 'शुरमेन! सनपद के नाम
से प्रसिद्ध था | इसकी राज्घानी मधुरा या सधुरा नगरी थी । शूरसेन ननपद
की सीमाएँं समय-समय पर चदुलती रहीं | काला तर में सधुरा नाम से दी यद
जनपद विए्यात हुश्ा । ई० सातवीं शती मे जय 'दीनी यात्री हुएन-सॉग यहाँ
झाया तब उसने लिया कि मधुर राज्य का विस्तार २, ००० सी ( जगभग
स३ मील रे था । इस वर्णन से पता प्वलता हैं कि सातवीं शती में मघुरा
राज्य के धम्तर्गत वर्तेमान मधुरा-'्रागरा जिर्षों के धतिरिक्त ध्याघनिक मरत-
पुर तथा घोलपुर जिने धर उपरले मध्यमारत का उत्तरी लखमग श्राघा
भाग रहा दोगा । दकिय पूर्व में मघुरा राज्य की सीमा सेमाइ-मुक्ति (जिम ली)
की पश्चिमी सीमा से तथा दक्षिणनपश्चिम में माखय राज्य की उच्री सीमा
से मिलती रही हीगी । सातवीं सती के बाद से मधुरा राज्य की सीमाएं घटती
गई । इसका प्रधान कारण समीप के बन्नीज राज्य की उन्नति थी, रिसमें
मधुरा तथा धन्य पद्टोसी राज्यों के बढ़े भू-भाग सम्मिलित हो गये |
प्राचीन शूरसेन या मथुरा जनपद का प्रारम्भ में जितना विस्तार था
उसमें हुएन-सांग के समय तक क्या देर-फेर होते गये, इसके संयंध में हम
निश्चित रूप से नहीं कद सकते, क्योंकि इसे प्राचीन साहिष्प श्यादि में ऐसे
प्रमाण नहीं मिलते जिनके झाघार पर विभिन््स कालों में इस जनपद की
लम्बाई-चीडाई को ठोऊ पता कार सके । प्राचीन सादित्विक उससे
से जो कुद्ु पता चकता दे वह यदद कि शूरसेन या. सधुरा परेगा के
उत्तर में दुरदेश ( श्राघुनिक दिरली श्र उसके झास-पास का देश ) थी,
जिसकी राज्दानी इन्द्रप्रस्थ तथा दस्थिनापुर ध | दच्तिय में पेदि राज्य
( श्ाघुनिक थु देखखंद तथा उसके समीप का कुछ सार ) का, जिसकी राजः
चानी का नाम था सूक्तिमती नगर । पूर्व में पंचाल्र राज्य ( धाधुतिक
रुदेलसंद ) था, जो दो भागों में बैँंा हुझा था--उत्तर पंचाल तथा दंद़िय
पंचाख | उत्तर चाले राज्य की राजधानी थट्च्दघा ( चरेल! ज़िले में मत मान
रामनगर) और दच्षिय चाले की कौपिकय (श्वाघुनिक कपिल, ज़ि फ़रू खा बाद)
थी ६ शूरसेन के पश्चिम वादा जनपद मस्स्य ( आधुनिक अलवर रियासत
तथा जपपुर का पूर्वी माग ) था । इसकी राजघानी दिराट नगर ( धाघुनिक
वैराट, नयपुर में ) थी |
दर ब्रज मुंडल-भाधनिक घन के संयंधर में मंडछाकृति या गोल झाकार फा
दोने की वात कद्ी जाती है; परन्तु न सो घजनापा-भापी प्रदेश बी सीमाओं
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