पालि साहित्य का इतिहास (१९६३) | Pali Sahitya Ka Itihas (1963) Ac 4746
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
7 MB
कुल पष्ठ :
331
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)( ६ )
आधे संस्कृत में उल्था कर “बिहार-उड़ीसा रिसर्च सोसाइटी' के जनेल में
प्रकाशित करवाया (१९६३४) ।
“तिब्बत में बौद्ध-धमं' लिखते समय जब राहुल जी ने भोटिया प्रंथो
के पन्ने उलरटे, तो उन्हें विदवास हो गया कि भारत से गयी कई हजार ताल
पोथियों में से वहाँ कुछ जरूर होनी चाहिए । तिब्बत की दूसरी यात्रा मे
ल्हासा में बैठ कर उन्होने 'विनयपिटिक' का अनुवाद भी समाप्त किया ।
इस बार रेडिड, साकया, आदि प्राचीन मठों की बात्रा मे 'वादन्याय
अभिधर्मकोदमूल, सुभाषित रत्नकोष, न्यायबिन्दुपड्जिका टीका, हेतु-
बिन्दु-अनुटीका, . प्रातिमोक्षसुत्र, मध्यान्तविभग भाष्य, वार्तिकालंकार
(खण्डित) आदि भारत से लुप्त प्रंथ मिले । उन्होने इनकी प्रतिलिपिया
अथवा फोटो कापिया तैयार कर ली । पहली बार तिब्बत से लौट कर
उन्होंने धर्मकी्ति के प्रमाणवातिक का तिव्बती से सस्कृत भाषान्तर करना
शुरू किया था । तिब्बत की दूसरी यात्रा से नेपाल के रास्ते लौटते
खग पंण्डित् हेमराज के यहाँ मूल की फोटो कापी ही मिल गयी,
जिसमे सिफ दस पन्ने नहीं थे ।
भारत लौट कर उन्होंने 'वादन्याय' छपवाया । १९६३४ मे जापान,
चीन, कोरिया की यात्रा पर सोवियत रूस की पहली झाँकी लेते ईरान के
रास्ते भारत लौट १९३६ में राहुल जी तीसरी बार तिब्बत पहुँचे । साक्या
में 'वातिकालकार प्रमाणवार्तिक भाष्य' पूरा मिला । साथ ही कणंगोमिक्ृत
सवृत्ति टीका भी अर्थात् प्रमाणवातिक की टीका और भाष्य, असग की
महत्त्वपूर्ण पुस्तक 'योगाचारभूमि' भी मिली । प्रमाणवातिक के तीन परिच्छेदो
पर प्रज्ञाकरगुप्त को टीका भी मिली । शलू विहार मे प्रमाणवातिक पर
मनोरथनन्दी कृत सुन्दर वृत्ति मिली । उन्होने सबकी नकल उतार ली ।
धर्मकीति के 'हेतुबिन्दु' का तिब्बती से अनुवाद और अचेट (धर्मा-
करदत्त) की टीका के सहारे इसे उन्होने बाद में संस्कृत मे किया अचेंट की
टीका और 'न्यायबिन्दुपड्जिका' (धर्मोत्तरक़ृत ) पर दुर्वेक मिश्र की टीकाए
उन्हें १६३६ में 'डगर' मठ में मिली ।
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