सूक्ति - सुधारस द्वतीय खण्ड | Suukti Sudhaaras Dvitiiy Khand-da

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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लगभग दस वर्ष पूर्व जालोर - स्वर्णगिरितीर्थ - विश्वपूज्य की साधना स्थली पर हमनें 36 दिवसीय अखण्ड मौनपुर्वक आयम्बिल व जप के साथ आराधना की थी, उस समय हमारे हृदय-मन्दिर में विश्वपूज्य श्रीमद्‌ राजेन्द्र सूरीश्वरजी गुरुदेव श्री की भव्यतम प्रतिमा प्रतिष्ठित हुई, जिसके दर्शन कर एक चलचित्र की तरह हमारे नयन-पट पर गुरुवर की सौम्य, प्रशान्त, करुणार्द्र और कोमल भावमुद्रा सहित मधुर मुस्कान अंकित हो गई । फिर हमें उनके एक के बाद एक अभिधान राजेन्द्र कोष के सप्त भाग दिखाई दिए और उन ग्रन्थों के पास एक दिव्य महषि की नयन रम्य छवि जगमगाने लगी । उनके नयन खुले और उन्होंने आशीर्वाद मुद्रा में हमें संकेत दिए ! और हम चित्र लिखित- सी रह गईं । तत्पश्चात्‌ आँखें खोली तो न तो वहाँ गुरुदेव थे और न उनका कोष । तभी से हम दोनों ने दृढ़ संकल्प किया कि हम विश्वपूज्य एवं उनके द्वासा निर्मित कोष पर कार्य करेंगी और जो कुछ भी मधु-सब्चय होगा, वह जनता-जनार्दन को देंगी ! विश्वपूज्य का सौरभ सर्वत्र फैलाएँगी । उनका वरदान हमारे समस्त ग्रन्थ-प्रणयन की आत्मा है । 16 जून, सन्‌ 1989 के शुभ दिन 'अभिधान राजेन्द्र कोष' में, *सूक्ति- सुधारस' के लेखन -कार्य का शुभारम्भ किया । वस्तुत: इस ग्रन्थ-प्रणयन की प्रेरणा हमें विश्वपूज्य गुरूदेवश्री की असीम कृपा-वृष्टि, दिव्याशीर्वाद, करुणा और प्रेम से ही मिली है । 'सूक्ति' शब्द सु + उवि्ति इन दो शब्दों से निष्पनन है । सु अर्थात्‌ श्रेष्ठ और उक्ति का अर्थ है कथन । सूक्ति अर्थात्‌ सुकथन । सुकथन जीवन को सुसंस्कृत एवं मानवीय गुणों से अलंकृत करने के लिए उपयोगी है । सैकडें दलीलें एक तरफ और एक चुटैल सुभाषित एक तरफ । सुत्तनिपात में कहा “विज्ञात सारानि सुभासितानि' ' सुभाषित ज्ञान के सार होते हैं । दार्शनिकों, मनीषियों, संतों, कवियों तथा साहित्यकारों ने अपने सद्ग्रन्थों में मानव को जो हितोपदेश दिया है तथा 1. .... सुत्तनिपात - 2/21.6 अभिधान राजेन्द्र कोष में, सूक्ति-सुधारस « स्वण्ड-2 « 11




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