श्रीरामकृष्णवचनामृत | Shree Ramkrishnabachnamrit
श्रेणी : साहित्य / Literature
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
41 MB
कुल पष्ठ :
657
श्रेणी :
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लेखक के बारे में अधिक जानकारी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)(१५)
ब्राद्मसमाज के अनेक लोग उनके पास आया जाया करते थे ।
श्रीरासद्ण केशवनन्द्र सेन के ब्राह्ममन्दिर में भी गये थे ।
श्री रानफुप्ण ने अन्य धर्मों की भी साधनाएंँ कीं । उन्होंने कुछ
दिनों तक इस्लाम धर्ग था पालन किया और “अल्लाह!
मन्त्र का जप करते ५. रत उन्होंने उस धर्म का अन्तिम ध्येय प्राप्त
कर लिया । इसी प्रकार उसके उपरान्त उन्होंने ईसाई धमं की
साधना की भर ईसामसीह के दर्शन किये । जिन दिनों वे जिस
धर्म की साधना में लगे रहते थे, उन दिनों उसी धर्म के अनुसार
रहने, खाते, पीते, बेठते-उठते तथा बातचीत करते थे । इन सब
साधनाओं से उन्होंने यह दिखा दिया कि सब धर्म अन्त में एक
ही ध्येय में पहुंचते हैं। और उनमें आपस में विरोध-भाव' रखना
मूखता हैं । ऐसा महान् कार्य करनेवाले ईश्वरी' अवतार श्री राम-
कृष्ण ही थे ।
इस प्रकार ईण्वरप्राप्ति के लिए कामिनी-कांचन का सवंधा
त्याग तथा भिन्न भिन्न धर्मों में एकता की दृष्टिट रखना इन्होंने
अपने सभी भक्तों को सिखाया और उनसे उनका अभ्यास कराया ।
इनके कतिपय शिव्य आगे चलकर भारतवर्ष के अतिरिक्त अमेरिका
आदि अन्य देशों में भी गये और वहाँ उन्होंने धीरामकृप्ण
के उपदेशों का प्रचार किया ।
१५ अगस्त सन् १८८६, की रात को गले के रोग से पीड़ित हो
श्रीरासकृप्ण ते महासमाधि ले ली; परन्तु महासमाधि में गया केवल'
उनका पांचभोतिक शरीर । उनके उपदेश आज संसार भर में
श्रीरामकृष्ण मिशन के द्वारा कोने कोनें में गूँज रहे हैं और उनसे
असंख्य जनों का कल्याण हो रहा है .
है... ---विद्याभास्कर' शुवल
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