श्रीरामकृष्णवचनामृत | Shree Ramkrishnabachnamrit

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Shree Ramkrishnabachnamrit by महेन्द्रनाथ गुप्त - Mahendranath Gupta

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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(१५) ब्राद्मसमाज के अनेक लोग उनके पास आया जाया करते थे । श्रीरासद्ण केशवनन्द्र सेन के ब्राह्ममन्दिर में भी गये थे । श्री रानफुप्ण ने अन्य धर्मों की भी साधनाएंँ कीं । उन्होंने कुछ दिनों तक इस्लाम धर्ग था पालन किया और “अल्लाह! मन्त्र का जप करते ५. रत उन्होंने उस धर्म का अन्तिम ध्येय प्राप्त कर लिया । इसी प्रकार उसके उपरान्त उन्होंने ईसाई धमं की साधना की भर ईसामसीह के दर्शन किये । जिन दिनों वे जिस धर्म की साधना में लगे रहते थे, उन दिनों उसी धर्म के अनुसार रहने, खाते, पीते, बेठते-उठते तथा बातचीत करते थे । इन सब साधनाओं से उन्होंने यह दिखा दिया कि सब धर्म अन्त में एक ही ध्येय में पहुंचते हैं। और उनमें आपस में विरोध-भाव' रखना मूखता हैं । ऐसा महान्‌ कार्य करनेवाले ईश्वरी' अवतार श्री राम- कृष्ण ही थे । इस प्रकार ईण्वरप्राप्ति के लिए कामिनी-कांचन का सवंधा त्याग तथा भिन्न भिन्न धर्मों में एकता की दृष्टिट रखना इन्होंने अपने सभी भक्तों को सिखाया और उनसे उनका अभ्यास कराया । इनके कतिपय शिव्य आगे चलकर भारतवर्ष के अतिरिक्त अमेरिका आदि अन्य देशों में भी गये और वहाँ उन्होंने धीरामकृप्ण के उपदेशों का प्रचार किया । १५ अगस्त सन्‌ १८८६, की रात को गले के रोग से पीड़ित हो श्रीरासकृप्ण ते महासमाधि ले ली; परन्तु महासमाधि में गया केवल' उनका पांचभोतिक शरीर । उनके उपदेश आज संसार भर में श्रीरामकृष्ण मिशन के द्वारा कोने कोनें में गूँज रहे हैं और उनसे असंख्य जनों का कल्याण हो रहा है . है... ---विद्याभास्कर' शुवल




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