श्रंगानाद | Shringanad

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Shringanad by चक्रवती - Chakravati

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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जल उठती रौरव अग्नि. सदा तुम्हारे... हग..... उन्मेष चलने. शत शतन्नियाँ लगती चल-पठक दल अनिमेष में है रुद्र प्रलयंकर अब जाग, जाग प्रचण्ड अभिषेक में । है देख रहा युग-विस्मय से, नव हर्ष के अतिरेक में । होता बंकिम श्र से. मीषणु तमोरात्रि मं परिवत्तेन जल. थल अ्म्बर में आलोइन हाह्ाकार, नल वषणु हे सैरव भयंकर अर जाग, जाग रे एक. जतेक में सब 'जड़-वेतन रुपन्दित तुम में, तुम चिर सत्य प्रत्येक में !




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