धर्म्मपद | Dharmmpad

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Dharmmpad  by रामचन्द्र रघुनाथ - Ramchandra Raghunath

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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( 8 ) ने अनेक प्रकार के दान-धर्म्म किए | ' वाठक का नाम सिद्धार्थ रक्खा गया | रानी मायावती की बीमारी दिन प्रति दिन बढ़ती गई और भन्तमें उसी में उसका शरीर छूट गया । ' मायादेवीकी खत्यु के पश्चात्‌ खिट्टाथ की सौतेली माता महाप्रजापति अथवा गौतमी उसका पालन-पोपण करने लगी । उस वालक पर राजा अपने प्राणोंसे भी अधिक प्रेम कंरने छगे। वह लड़का अब दिन प्रति दिन बढ़ता गया । उपनयन-विधि आदि हो युकने पर राजाने गौतमकों विश्वामित्र नामक एक बिद्वान ब्राह्मणके यहाँ घिद्योपाज॑न करने के लिये भेजा । गौतम इतने बुद्धिमान, थे कि गुरुका वत्तछाया पांठ उन्हें उसी समय कण्ठ हो जाया करता था । वे चड़े विचारशील थे । इसलिये गुरुजी जो कुछ बतढाते थे, उसे वे उसी समय समभ जाया करते थे । अपने सहपाठियों से वे सर्वदा प्रेमपूर्वक वर्ताच क्या करते थे। जब वे. किसी को विपत्ति में देखते, ती पहले उसकी सहायता किया करते थे । वे अपने गुरु तथा अपनी गुरु-पल्ली के का्ोंको बड़ी सहाजुभूति के साथ करते थे । इन गुर्णों से आप सबको प्रिय हो ग़ये थे । मैं राजपुत्र, श्रोमान, सत्ताघारी और सबसे श्रेष्ठ हूं ; इस आहं- भाव से प्रेरित होकर उन्होंने कभी भी अपने अभ्यास की ओर दुर्लश्ष नहीं किया भर,न किसी का मान-खण्डन किया । शुरुके घर अपने पुत्र का आचरण देखने के लिए एक बार राजा शुद्धो- घन और रानी प्रज्ञापति' स्वयं गये थे। वहाँ अपने 'पुत्र का आचरण देखकर उन्हें वड़ी प्रसन्नता हुई। गुरु के घर चिद्या




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