निशीथ एक अध्ययन | Nishidh ek Adhyan
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
4 MB
कुल पष्ठ :
88
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)निधीध सुत्र झंग या घ्ंगवाद्य £ 1-2
निशीध स्रू्र झंग या अंगवाद्य ?
,.... समग्र ग्रागम ग्रन्यों का प्राचीन वर्गीकरण है-नश्रंग घोर झंगदास्य । नियीय सूद से
नाम से जो ग्रन्थ हमारे समल है, उसे श्राचारांग की पांचवीं चूदा* कहां गया हैं पर पम्ययन
की टृष्टि से वह झ्ाचारांग का छ्वीसर्वा श्रध्ययन घोषित किया गया है । इस पर
से स्पष्ट है कि वह कभी श्रंगान्तगंत रहा है । किन्तु एक समय ऐसा श्ाय कि उपभदध पासाराग
सुत्र से इस भ्रघ्ययन को प्रथक्ू कर दिया गया; श्रौर इसका छेद सु्ों में परिग दी
जाने लगा । तदनुसार यह निशीथ सूत्र, यंग ग्रन्यथ-धाचारांग को सं सोसे हे सार
झंगान्तगंत होते हुए भी,ग्रंग वाह हो गया है ।
चस्तुत: देखा जाए तो भंग श्रौर श्रंगयाहा जैसा विभाग उत्तरकादीन पम्प मे नं!
होता है, किन्तु श्रंग, उपांग, छेद, सरल, प्रकीर्णक श्रौर चूलिका--इस स्प में घायस पन्पों या
विभाग होता है । श्रौर तदनुसार नियीथ छेद में संमिलित किया जाता है ।
एक वात की श्रोर यहाँ चिघोप ध्यान देवा श्रावश्यक है कि सययं शाचारांग से था
'निकीथ' एक भ्रंतिम चूला रूप है । इसका श्र्थ यह है वि वह फभीन्त-ामी सूप स्लासस है
जोड़ा गया था । श्रौर विद्योप कारण उपस्थित होने पर उसे पुनः ग्ालासंग से प्गू गरे
दिया गया ।
उपयुक्त विवेचन पर से यह कहा जा सकता है कि नियीस सौतिक सूप से दावा सगे हा बसे
था ही नहीं, घिन्तु उसका एक परिधिष्ट माग्र था । दस हृष्टि से छेद में, जो लि पंगियरय या
श्रंगेतर वर्ग था, निशोथ को संमिलित करने में कोर्ट घापत्ति नहीं हो सकती पो |
्रंगवर्ग के थ्रस्तगंत न होने मात्र से निधीय का महत्व यन्य संग यो से मुह उसे
हो गया है--यह तात्पयं नहीं है; वयोंकि निधीय व ग्रपना जो सहत्त्य दूं. वही सो इसे पंप हे
श्रन्तर्गत करने में कारण है । निशीध को श्राचारांग का झंग केवस इ्देनास्यर 'परनाय मे माना
जाता है, यह भी ध्यान देने की वात है । दिगग्चर प्राम्नाय सें नि्ीय लत संगदारय सर्प हो
माना गया है । शरंगों में उसका स्थान नहीं है । वस्तुतः श्रंग की ददारसा सार नियोग पर
चाहा ही होना चाहिए । व्यांकि वह गणधरकृत नो है नहीं । स्पदिर या
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है । ग्रतएव जंसा कि दिगम्वर ग्राम्नाय में उसे केवल पंगदाह्य पहा गया हे. पस्युक:
श्रंगवाह्य ही होना चाहिए । शरीर *सवेताम्वरों के यहां भी घंतवोसत्वा ऐद पगें थे पसंद दर
वह स्रपने ठीक स्थान पर पहुंच गया है ।
१, नि० पृ० २
पर. चही पू० *
दे. ऐशदयग में घन्तर्गत होने पर भी भाप्यश्र घोर सूश्यिगर सो उस पं पगोग के मादा!
रहे-देखो, निस गात ६१६८ पीर उसदा सपान ता सिधोए पूि हुए यार धिग शाग
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४, देखी, पट सप्टागम साग २ पूल ६६, तपा ससायपापुर भाग ( पुर से
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