निशीथ एक अध्ययन | Nishidh ek Adhyan

55/10 Ratings. 1 Review(s) अपना Review जोड़ें |
Nishidh ek Adhyan by हीरालाल कापडिया - Hiralal Kapdiya

लेखक के बारे में अधिक जानकारी :

No Information available about हीरालाल कापडिया - Hiralal Kapdiya

Add Infomation AboutHiralal Kapdiya

पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

(Click to expand)
निधीध सुत्र झंग या घ्ंगवाद्य £ 1-2 निशीध स्रू्र झंग या अंगवाद्य ? ,.... समग्र ग्रागम ग्रन्यों का प्राचीन वर्गीकरण है-नश्रंग घोर झंगदास्य । नियीय सूद से नाम से जो ग्रन्थ हमारे समल है, उसे श्राचारांग की पांचवीं चूदा* कहां गया हैं पर पम्ययन की टृष्टि से वह झ्ाचारांग का छ्वीसर्वा श्रध्ययन घोषित किया गया है । इस पर से स्पष्ट है कि वह कभी श्रंगान्तगंत रहा है । किन्तु एक समय ऐसा श्ाय कि उपभदध पासाराग सुत्र से इस भ्रघ्ययन को प्रथक्‌ू कर दिया गया; श्रौर इसका छेद सु्ों में परिग दी जाने लगा । तदनुसार यह निशीथ सूत्र, यंग ग्रन्यथ-धाचारांग को सं सोसे हे सार झंगान्तगंत होते हुए भी,ग्रंग वाह हो गया है । चस्तुत: देखा जाए तो भंग श्रौर श्रंगयाहा जैसा विभाग उत्तरकादीन पम्प मे नं! होता है, किन्तु श्रंग, उपांग, छेद, सरल, प्रकीर्णक श्रौर चूलिका--इस स्प में घायस पन्पों या विभाग होता है । श्रौर तदनुसार नियीथ छेद में संमिलित किया जाता है । एक वात की श्रोर यहाँ चिघोप ध्यान देवा श्रावश्यक है कि सययं शाचारांग से था 'निकीथ' एक भ्रंतिम चूला रूप है । इसका श्र्थ यह है वि वह फभीन्त-ामी सूप स्लासस है जोड़ा गया था । श्रौर विद्योप कारण उपस्थित होने पर उसे पुनः ग्ालासंग से प्गू गरे दिया गया । उपयुक्त विवेचन पर से यह कहा जा सकता है कि नियीस सौतिक सूप से दावा सगे हा बसे था ही नहीं, घिन्तु उसका एक परिधिष्ट माग्र था । दस हृष्टि से छेद में, जो लि पंगियरय या श्रंगेतर वर्ग था, निशोथ को संमिलित करने में कोर्ट घापत्ति नहीं हो सकती पो | ्रंगवर्ग के थ्रस्तगंत न होने मात्र से निधीय का महत्व यन्य संग यो से मुह उसे हो गया है--यह तात्पयं नहीं है; वयोंकि निधीय व ग्रपना जो सहत्त्य दूं. वही सो इसे पंप हे श्रन्तर्गत करने में कारण है । निशीध को श्राचारांग का झंग केवस इ्देनास्यर 'परनाय मे माना जाता है, यह भी ध्यान देने की वात है । दिगग्चर प्राम्नाय सें नि्ीय लत संगदारय सर्प हो माना गया है । शरंगों में उसका स्थान नहीं है । वस्तुतः श्रंग की ददारसा सार नियोग पर चाहा ही होना चाहिए । व्यांकि वह गणधरकृत नो है नहीं । स्पदिर या कद नध# न पृ नस गप्छु ४ थी खरा य सपय उ हे उपर ये हिनिवय द टन १ है । ग्रतएव जंसा कि दिगम्वर ग्राम्नाय में उसे केवल पंगदाह्य पहा गया हे. पस्युक: श्रंगवाह्य ही होना चाहिए । शरीर *सवेताम्वरों के यहां भी घंतवोसत्वा ऐद पगें थे पसंद दर वह स्रपने ठीक स्थान पर पहुंच गया है । १, नि० पृ० २ पर. चही पू० * दे. ऐशदयग में घन्तर्गत होने पर भी भाप्यश्र घोर सूश्यिगर सो उस पं पगोग के मादा! रहे-देखो, निस गात ६१६८ पीर उसदा सपान ता सिधोए पूि हुए यार धिग शाग न दि दे 6 पृ० इन .प कु हू ४, देखी, पट सप्टागम साग २ पूल ६६, तपा ससायपापुर भाग ( पुर से




User Reviews

No Reviews | Add Yours...

Only Logged in Users Can Post Reviews, Login Now